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________________ ६, ७] गुजरातो कपट जाण्यौ तब नारि तणौए साह भाग्यौ' मन माहि तो। त्रियाचरित्र कले नहिए ज्ञान दृष्टि इम चाहि तो ॥२१॥ इम जाणि साह बोलियौए मधुरिय सुललित वानि तो । ए बेटि छइ तम्ह तणौए तम्ह खोलि घालि जानि तो ॥२२॥ दूहा-इम कहि साह निरमलौ धर्मभ्यान करै सार । समकित पाले रूबडौ व्रत सहित भवतार ॥२३॥ साह बोलायो निरमली राजाई गुणवतं । रत्न कारनि ते मोकल्यो दिपांतरै जयवंत ||२४|| तव साह घरि आवियो सिख दिई तव सार । निज नारीते रूवडी सुरखे रहिजो सविचार ॥२५॥ दुहि कन्या छै रूचडी परनावोजी तम्हे चंग । घर वर सूडो देखि करि' सजन सहित उत्तंग ||२६॥ इम कहि साह निसरयो रनदीप भणि सार । नमोकार मनमाहि धरि सनी सनी तेनि वार ॥२७॥ ए कथा हवे इहा रही अवर सुनो सुजान । ब्रह्म जिनदास भणे रूवौ जिम जाणौ गुणज्ञान ॥२॥ [६] मास सुणो सुंदरिनी तिने अवसरि साह आवियोए-सुणो सुंदरि-चांगदत्त तेह नाम । चांगवती नारी तेह तणीए-सुणो सुंदरि-रूपसौभागनो ठाम ॥१॥ तेह बेहु कुखे उपनिए -सुणो सुंदरि-गुणपाल गुणवंत । रूप सौभागै आगलौए-सुणो सुंदर-सुललित छै जयचंत ॥२॥ तेहनै मागवा कारणौए-सुणो सुंदरि-कलिंग गाम थका जानि ! आव्या सरस सुहावनाए-मुणो सुंदरि-रत्नपुर सुख खानि ॥३॥ सुगंधा तणौ रूप देखियोए-सुन सुंदरि-रीझौते अपार । मागनौ करै अति रूवडोए-सुन सुंदरि-विनय सहित सविचार ॥४॥ अवगुण बोली अति घणाए-सुन सुंदरि-रुपिनि अतिहि सविशाल | बड़ी बेटीको अति घणोए-सुन सुंदरि-वस्वाणौ" निज बाल ||५|| चांगदत्त साह बोलियोए.सुन सुंदरि-ते कन्या तम्ह देउ । अवगुण सयल मे पतगरया-मुन सुंदरि-इम जाण्यो तम्हे भेउ' ॥६॥ तब विवाह तिण मेल्योए-सुन सुंदरि-सुगंध कुवरिनौरंग । लगन धयो तव रूबद्धोए-सुन सुंदरि-महोछब होइ तिहा रंग ॥७॥' १. स चितवे २. स मुझ, ३. स अति जयवंत, ४. प्रतुहि, ५. स देखो रूवडि, ६. स अवर कथा, ७. स उपनोए, ८. स कर्लफ, ९. स रोश्या, १०.स वखान्या, ११. स भाव, १२. स सुगंधिनी तव ।
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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