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________________ ४,५] [५५. गुजराती पंच चरण' स्वस्तिक मांडियौ । दश कमल करौ अति सविचार ॥ (तेह उपरि कलस मुको एक चंग | जिनवर बिंब थाप्यो मन रंग) ||१३|| अष्ट प्रकारी पूज्या सार । पूज्या जिनवर त्रिभुवन सार' । दश अष्टक दीजै गुणवंत । स्तवन दश पढिजे जयवंत ॥१४॥ छंद छप्पयं जयमाला सार । विनति पढिजे भवतार ।। रास भास गीत सविशाल । धवल मंगल गीत गुणमाल ॥१५॥ अष्टोत्तर सौ जपी चलि जाप । पुष्पगंध लेइ गुणमाल ॥ इनि परि महोछत्र कीजे चंग । राति जागरण मनि रंग ॥१६॥ पछे निजपरि आवौ गुणवंत 1 जिनवर स्वामि पूजौ जयवंत । सुपात्रह दीजै वलि दान । विनय भाव सहित गुण गाण ॥१७॥ इनि परि दश बरस लागै सार । ए वरत कीजै भवतार ।। वरत पुरै उजवनौ चंग । दश दश बाना चडाचो मनिरंग ॥१८॥ पकवान फल फूल अपार । उपकरण आनो ते अपार ॥ चंद्रापक आदि अति चंग | विस्तारौ जिनभवने उत्तंग ॥१९॥ उजबनों जो सकत नहि होइ । ती प्रत बिमनौ करौ सहु कोइ ।। सदगुरु वानी सांभलि चित् । भवियण आनंदा जयवंत ॥२०॥ दहा-बरत लिधौ सदगुरुं कन्हे श्रावक भचियण चंग । राय विद्याधर रूवडा राणिय सहित अभंग ॥२१॥ दुरगंधा वलि व्रत लियौ सुगंधदशमि भवतार । नमोस्तु कियो अतिरूवडी निपनी जयजयकार ॥२२॥ [५] भास रासनी पछै निजधरि आवियाए सयल श्रावक गुणवंत तो । दशमि वरत कियौ रूवडोए जिनभुवने जयवंत तो ॥१॥ दश घरस लग रूवडोए पछै उजवनौ सार तो । सयल संघ मिलइ निरमलोए महोछव जय जयकारतो ॥२॥ पूज्या श्रावकै दियौए ते ब्राह्मणिते सार तो। दान मान पाम्या घणुए धर्मफलै सविचारतो ॥३॥ दुरगंध फिटि गयौए सरीर हुचौ निरोग तो । संजम श्री आर्जका कन्हेए अनुव्रत लियो गुणजान तो ॥४॥ पछे आयु थोडौ हवीए कनक राजा जयवंत तो । कनकमाला राणि तेइ तणिए, रूपसौभाग अपार तो ॥५॥ १. अदिवस, २. अछूट गया है। ३. प्रसार, ४. स पहिलो, ५, स वस्तु स्तवन, ६. स गुण व्याप, ७. स सविशाल ८. स ते वरत लियौ गुरु ९. म निपन ।
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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