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सुगन्धदशमीकथा
दूहा - सदगुरु स्वामी चोलिया मधुरिय सुललित बानि । सुणो वच्छ लम्हे रूवडा भवांतर कहु दुःखखानि ||२०|| श्रीमति राणी आदि करि कही सयल अवतार | तब दुरगंधा मनउ बांधा सदगुरु पाय ||२१|| आठ मूलगुण तिनि लिया वार वरत वलि चंग | पाप सयल निवारिया धर्म लिधो उत्तंग ||२२||
[४] भास चौपनी
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तिहा कि मरन पामि वलि जान । उजेनी उपनी दुखखान || ब्राम्हनने घरि बेटी थोर । बलि दुरगंधा हुई घोर || १|| बाप मरण पानी तिनि बार । पाम्या दुःख तेनि अपार ॥ हल हल मोठी हुइ ते जाणि | माता मुई चली दुखखानि || २ || काष्ट भार आने ते घोर । पुण्य चिन कष्ट करइ घनघोर ॥ इनि परि पेट भरे आपनौं । दुःख स तिहा अतिघणौ ॥ ३ ॥ तिनि अवसर मुनिवर भवतार | सुदर्शन आव्या गुणधार || समकित ज्ञानचरितगुणवंत | तप करे स्वामी जयवंत || ४ || अश्वसेन राजा तिहा अतिचंग | चाँदवा आव्या निज मनि रंग || पूज्या चरण कमल सार | पूछो धर्म तणौ विचार ॥५॥ मचित्रण आध्यातिहा बलि जाणि । साँभलवा गुरु निरमल वानि ॥ ले लोक दीठा अतिबंग | दुरगंधा हरषी मनरंग ॥६॥ काष्ठमार नाख्यौ तिनि चार | ते आवी तिहा सुविचार | संघसहित दीठा मुनिरा | जाति स्मरन उपनौ तिनि टाय ॥७॥ मुरा आवि पडी तिनि यम । राजा पूछै तब सिर नाम || कहौ स्वामि त्रिभुवनभवतार | कवन गुणे गुण पडिथ नार ॥ ८॥ सदगुरु कहे तब मधुरिय चानि । भवांतर का सबै जानि ॥
तब विस्मय पाम्यां ते धरम वरत दियौ एह सुगंध दशम वरत अति तिनि अवसरि विद्याधर ते आव्यौ तिनि अवसर उजालो
राय । वलि पूज्या स्वामी मुनिराय ॥९॥ सार । जिम ए छुटै पाप अपार | चंग ए बरत करौ उत्तंग ॥ १० ॥ सार । जयकुमार तेह नाम विचार || जान । सुनवा सद्गुरु लुलकित बान ॥ ११ ॥ पाख । दशमी के दिन करो उपास ॥ उत्तंग | जाउ भवियण भनि रंग ॥ १२ ॥
भाद्रव मास पाछै जिनवर भवन
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१. स उपसम्यु, २ स लियो, ३. स पाम्यो, ४ सवारोवार, ५ स वांदन, ६ ब मनमाहि, ७. अ व प्रति, ८ अ व दुरडा, ६ स पूछे ।