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संस्कृत यद्येचं सुन्दरि स्वं मां वृणीष्य मृगलोचने । धृता पाणी नृपेणाशु तयोमित्युदिते सति ।।१०६ ।। प्रभाविकसने पूष्णः प्रातरुत्थाय स व्रजन् । दष्टवाहिवत्या यासि व तया चेलाञ्चले धृतः ॥१०७ ।। नकं नक्तं समेष्यामि प्रियेऽहं वेश्म ते वहम् । गच्छोकः स्वमित्युक्ते गोपोऽहमिदमब्रवीत् ।। १०८ ॥ गते राज्ञि निजं सौंध बन्धुमत्यवदाजनान् । मङ्गलावसरे पापा न जाने सा क्वचिद् गता ॥ १० ॥ नारिके धारिके चम्पुरहि नाश करणिके। धर्म्य कार्य जिते धन्ये तिलका दहशे किमु ।। ११० ।। पृच्छन्ती स्त्रीजनाने दर्शयिष्यामि कि मुखम् । भर्तुर्गता गिरन्तीत्थं श्मशान मिस्तेहम् ।। १११ ।। समक्षं सर्वलोकानां दृष्ट्वा तामित्युवाच सा। दुःपुत्रि क्व गता रसडेऽनुष्ठितं किमिह त्वया ॥ ११२ ।। मातमतेन तेऽत्रस्था वलवन विवाहिता । पश्यताकृत्यमेतस्यास्तच्छु त्वा पूच्चकार सा ।।११३।।
आनीता सा ग्रहं धृत्वा तया रञ्जितलोकया । नूनं निष्पादिता धात्रा स्त्रियः केवलमायया ॥११॥
तिलकमतीकी बात सुनकर राजाने उससे पूछा-हे मृगलोचने सुन्दरि, यदि ऐसी बात है, तो तू मुझसे ही अपना विवाह क्यों नहीं कर लेती ? इतना कहकर और उसके 'ओम्'का उच्चारण करनेपर राजाने उसका पाणिग्रहण कर लिया ॥ १०६ ॥
प्रातःकाल ज्योही सूर्यको किरण प्रकट हुई त्योंही राजा वहाँ से उठकर प्रस्थान करने लगा। तब तिलकमतीने उसका अँचल पकड़कर उसे रोक लिया और कहा-आप सर्पके समान मुझे दशकर कहाँ जाते हो ? तब राजा बोला- हे प्रिये, मैं प्रतिदिन रात्रिको तुम्हारे घर आया करूँगा। तुम भी अब अपने घर जाओ। इतना कहकर और 'मैं गोप हूँ' ऐसा अपना परिचय देकर राजा वहाँ से अपने महलका चला गया ॥ १०७ -१०८ ॥
___ यहाँ श्मशानमें जब यह घटना हो रही थी तब सेठके घरपर क्या हो रहा था सो सुनिए । सेठानी बन्धुमतीने श्मशानसे लौटते ही लोगोंमें यह कहना प्रारम्भ किया--अरे, यह पापिनी कन्या इस बियाह के मंगलावसरपर न जाने कहाँ चली गई ? हे तारिके, हे धारिके, हे चंपुरंगि, हे चंगि, हे कुरंगिके, हे धन्ये, हे कम्ये, हे जिते, हे धन्ये, क्या तूने तिलकाको देखा है ? इस प्रकार स्त्रीजनोंको पूछती हुई और कहती हुई-'अब पतिके सम्मुख मैं किस प्रकार अपना मुँह दिखलाऊँगी' वह घरसे निकलकर अन्ततः उस छलके स्थान श्मशानमें जा पहुँची। वहाँ तिलकमतीको देखकर सब लोगोंके समक्ष सेठानी कहने लगी-अरी कुपुत्रि ,तू यहाँ कहाँ चली आई ? अरी रण्डे, तूने यहाँ क्या किया ? सेठानीके ये बचन सुनकर तिलकमती बोली-हे माता, तुम्हारी ही इच्छासे तो मैं यहाँ आकर बैठी हूँ और एक गोपके साथ मेरा विवाह हुआ है । कन्याकी यह बात सुनकर सेठानीने उसे धुतकारा और कहा-देखो इस लड़कीकी करतूत । फिर सेठानी उसे