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सुगन्धदशमीकथा
राज्ञः श्रेष्ठी बभूधास्य पुण्यधीजिनदत्तवाक् । तत्सनामा प्रियतस्य तनूजा सामवत्तयोः ।। ७७ !! अदृष्टापत्ययात्रेण श्रेष्टिना बहुमानिता । रूपलावण्यसदीप्ति भाग्यसोभाग्यराजिता ।। ७८।। सवलक्षणसम्पन्ना सर्वावयवसुन्दरा। सिताप्राधिकसौरभ्यसुगन्धितदिगन्तरा ॥ ७E || योषितां तिल कीभूता तिल कादिमतिनता । नरनारीकराम्भोजकुचकुडमललालिता ॥१०॥ अथान्यस्मिन्दिने कन्या पापशेषेण बीक्षिता। बभूव तत्प्रतापेन भूयोऽपि मृतमातृका ॥१॥ प्रथास्ति पणिजा नाथो वरे गोवर्धने पुरे। सुधीः ऋषभदत्ताख्यो बन्धुमत्यङ्गजास्य च ।। ८२ ॥
लम यूटमान्य पेरतामती तामसोजसा। रजोदर्श तया युद्ध्या नेमे तेजोमती सुताम् ॥ ८३ ॥ स्नानविलेपनर्वस्त्रभूषणः शयनासनैः।। लालयामास तामन्यां दुनोति स्म विदप्रस्तुः ॥४॥ तद्विलोक्य बणिग्जायायशः संक्षन्धमानसः । प्रशिक्षयद् द्वयं दास्योः समये तिल कामिति ।। ८५ || युवाभ्यां सवेयत्नेन पालनायेयमजसा।
ऋते मातुरपत्यानां दुष्करा जीवनक्रिया ॥८६॥ पुण्यवान् सेठ था। इसकी सेठानीका नाम था जिनदत्ता। इन्हींके यह दुगधाका जीव पुत्री रूपसे उत्पन्न हुआ। सेठने अभी तक अपनी सन्तानका मुख नहीं देखा था । अतः उसने इस कन्याके जन्मको ही धन्य माना । कन्या भी रूप, लावण्य, कान्ति एवं भाग्य-सौभाग्यसे परिपूर्ण थी। वह समस्त लक्षणोंसे सम्पन्न व अपने सभी अंगोंसे सुन्दर थी । उसके शरीरसे निकलनेवाली चुगन्ध कर्परसे भी बढ़कर थी और सब दिशाओंको सुगन्धित करती थी। वह समस्त नारियोंमें तिलक के समान श्रेष्ठ थी जिससे उसका सार्थकनाम तिलकमती रखा गया। वह समस्त नर-नारियोंके हस्तकमलों व स्तनशन द्वारा लालित पालित होने लगी ।। ७६-८० ॥
किन्तु इस कन्याका पूर्वोपार्जित पाप अभी भी शेष था जिसके प्रतापसे उसे मातृवियोग का दुःख भोगना पड़ा । तब उसके पिताने कामके वशीभूत हो गोवर्धनपुरके धीमान् चणिग्बर ऋषभदत्तकी पुत्री चन्धुमतीसे अपना विवाह कर लिया। उसके साथ तामसी वृत्तिसे भोगबिलास करते हुए उसके एक पुत्री हुई जिसका नाम रखा गया तेजमली || ८१-८३ ॥
नीच प्रकृति सेठानी अपनी इस औरस पुत्रीको स्नान, विलेपन, वस्त्र,आभूषण,शयन,आसन आदि द्वारा खूब लाड़-प्यारसे पालने लगी और अपनी उस सौतेली कन्याको दुःख देने लगी । सेठ अपनी नयी सेठानीके चशमें था । तथापि सेठानीका वह व्यवहार देखकर उसके मनमें बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ। उसने अपनी तिलकमती नामक कन्याको दो दासियोंके सुपुर्द किया और उन्हें आदेश दिया कि तुम सब प्रकार यत्नपूर्वक इस कन्याका पालन-पोषण करो। सच है माताके बिना बाल-बच्चोंकी जीवन क्रिया बड़ी कठिन होती है ।। ८४-८६ ।।