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संस्कृत
रातिकानि पुस्तानि सवखाणि सहौषधैः । भवन्ति संघदानानि तथार्याद्यंशुकानि च ॥ ६६ ॥ शौच-संयम- संज्ञानसाधनानि हि यानि च । थायोग्यं प्रदेयानि मुनिभ्योऽन्यान्यपि श्रुवम् ॥ ७० ॥ Friesi aferiत्यो भक्त्या बहुफलप्रदः । फलं न सर्वथा चिन्त्यं स्तोकेन स्तोकमित्यपि ॥ ७१ ॥ शापिessदानेन रत्नदृष्टिः प्रजायते । तद् भक्ति
कालापेक्षया च निदर्श्यते ॥ ७२ ॥ नरो वा पनिता वापि व्रतमेतत्समाचरेत् । इहैव सुखितामेत्य स्वर्गभूत्वा शिवभवेत् ॥ ७३ ॥ श्रुति समजो राजा पूतिगन्धा द्विजाङ्गजा |
हन्ति स्म व्रतं प्रायः सर्वेऽपि हितकांक्षया ॥ ७४ ॥ साहाय्यात्सा नृपादीनां समाराध्योत्तमं व्रतम् । समाधिना मृतार्याणां समीपे जिनभावना ॥ ७५ ॥ अथारित विश्वविख्यातं पुरात्नं कनके पुरम् | तस्मिन्कनकमालेष्टः कनकप्रभभूमिभृत् ॥ ७६ ॥
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अर्थात् आधुनिक पुस्तकों, वस्त्रों और औषधोंका दान संघको देना चाहिए | अर्जिकाओं को भी वस्त्रादिक प्रदान करना चाहिए। मुनियों को शौच के साधन कमण्डल, संयम के साधन पिच्छिका, ज्ञानके साधन शास्त्र तथा इसी प्रकारके अन्य धर्म व ज्ञानकी साधना में उपयोगी वस्तुओंका यथायोग्य दान करना चाहिए ॥ ६६-७० ॥
ऊपर कही गई व्रत उद्यापनकी विधि यदि अल्प रूपमें भी भक्ति सहित की जाय तो वह बहुत फलदायक होती है। ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि सजावट व दान आदिकी विधि यदि थोड़ी की जायगी तो उसका फल भी थोड़ा होगा साग मात्रका थोड़ा-सा भोजन सुपात्रको करानेसे भी रत्नोंकी दृष्टि रूप महान फल प्राप्त होता है । यह सब मुख्यता से भक्तिका ही प्रभाव है । उस भक्तिके प्रदर्शनका स्वरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुसार बतलाया जाता है। जो कोई नर अथवा नारी इस व्रत का पालन करता है, वह इस जन्ममें सुख पाता है, मरकर स्वर्ग में देव होता है और फिर अनुक्रमसे सुख भोगता हुआ मोक्षके सुखको भी पा लेता है ।। ७१-७३ ॥
मुनि द्वारा बतलाई हुई सुगंध दशमी व्रतके पालन करने की विधिको सुनकर उस राजाने, उसकी समस्त प्रजाने, तथा उस दुर्गंधा द्विज कन्याने एवं प्रायः सभीने अपने हितकी वांछासे उस व्रतको ग्रहण किया । राजा व अन्य धार्मिक जनोंकी सहायता से दुर्गंधाने उस उत्तम व्रतकी भले प्रकार आराधना की । इस प्रकारके धर्माचरण सहित दुर्गंधाने इस बार आर्यिकाओंके समीप जिन भावना पूर्वक समाधि-मरण किया || ७४-७५ ||
अथ कनकपुर नामका एक विश्वविख्यात प्राचीन नगर है। वहाँ कनकप्रभ नामका राजा अपनी कनक्रमाला नामक रानी सहित राज्य करता था । इस राजाका जिनदत्त नामक