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संस्कृत
सा जग पूर्ववृत्तान्तं देवाहं राजवल्लभा । atrateginnerfoणी कुष्टिनी मृता ॥ ५२ ॥ गर्वरी (?) गर्दभी जाता शूकरी संवरी तथा । पुनर्योजन दुर्गन्धा चाडाली विजाधुना ॥ ५३ ॥ नेक वाक्यानि स्मृत्वा दुःखानि मूच्छिता | मम ज्वरयते सेयं साधुगा कटुम्बिका ।। ५४ ।। वचः सत्यमिदं साधी परमं नृप नान्यथा । भूयोऽपि कुतकाद्राज्ञा विशेषात्तत्कथा श्रुता ॥ ५५ ॥ परेका भविष्यन्ति शुभावहाः । अमुष्या अथ स प्राह सुगन्धदशमीत्रतात् ॥ ५६ ॥ तत्कर्थ क्रियते तात भूपताविति जल्पिते । faarateeना घनशय वियचरे ॥ ५७ ॥ areer समासीने सावधानेऽखिले जने ।
वक् (?) प्रति नृपं कामकरिकण्ठीरवो मुनिः ॥ ५८८ ॥ भाद्रपदे मासे शुक्लेऽस्मिन् पंचम दिने | उपोष्यते यथाशक्ति क्रियते कुसुमाञ्जलिः || ५६ ॥
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राजाके उस प्रकार पूछनेपर दुर्गंधा अपने पूर्व भचका वृत्तान्त बतलाने लगी । वह बोली-- हे देव ! मैं अपने पूर्व जन्ममें राजाकी प्यारी श्रीमती नामकी रानी थी। मैंने दुष्ट भावसे मुनिराजको कुत्सित अन्नका भोजन कराकर सन्ताप पहुँचाया। उसी पापके फलस्वरूप मैं कुष्टिनी होकर मरी । तत्पश्चात् मैंने क्रमशः गली भैंस, गदही, शूकरी और साँभरीकी पर्याय धारण की। फिर मैं एक योजन दुर्गंध छोड़नेवाली चाण्डाल-पुत्री हुई। वहाँ से निकलकर अब इस भवमें मैं ब्राह्मण कन्या हुई हूँ | मुनिराजके वचनोंको सुनकर मुझे अपने वे सत्र पूर्वं पर्यायोंक दुख स्मरण हो आये। इसी कारण मैं मूच्छित हो गई। साधुको दिया गया वह कड़बी तुम्बीका आहार अभी तक मुझे दुःख पहुँचा रहा है ।। ५२-५४ ॥
सत्य हैं
दुर्गाबात सुनकर राजाने मुनिराजसे पूछा- हे साबु, क्या दुर्गंधाकी कही हुई बातें मुनिराजने उत्तर दिया- राजन्, जो कुछ इस बालिकाने कहा है वह सब परम सत्य है, उसमें कुछ भी झूठ नहीं है। तब राजाने पुनः कौतुकाश दुर्गंधाको कथा विशेष रूपले विस्तार पूर्वक कहलवाकर खुनी । उस कथाको सुनकर राजाने फिर पूछा- हे मुनिराज, इस कन्याका परलोक कैसे सुधर सकेगा ? मुनिराजने कहा- सुगन्ध दशमी व्रतके द्वारा ही इस बालिकाका परलोक सुधरेगा । राजाने फिर पूछा- हे मुनिराज, सुगन्ध दशमी व्रत किस प्रकार किया जाता है ? राजाने जब यह प्रश्न किया, उसी समय वहाँ आकाश मार्ग से आते हुए धनंजय नामक विद्याधरका विमान स्खलित हुआ। वह विद्याधर अपने विमानसे उतरकर मुनिराज के दर्शन को आया और मुनिराजको नमस्कार करके यथास्थान बैठ गया । समस्त दर्शक जन भी सावधान हो गये । तब कामरूपी हस्तीको सिंहके समान दमन करनेवाले मुनिराज राजा के प्रश्न के उत्तर में सुगन्धदशमी व्रत का पालन करने की विधि बतलाने लगे ।। ५५-५८ ॥
मुनिराज बोले- उत्तम भाद्रपद मासके शुक्लपक्षकी पंचमी तिथिके दिन उपवास करना