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प्रस्तावना
३
इस रासके अन्त में उन्होंने यमुना नदी के तटपर बसे हुए महावन नामक नगरके जिन मन्दिरको अपना रवा स्थल प्रकट किया है। यथा
अमिय सरीसर जवणजलु ।
जयरु महावणु सग्गु ॥
सहिं जिणमणि वसंतद्दण |
धिरज रासु समग्गु ॥
कि एक बीवरी रचना 'गडी' भी है, जिसमें उन्होंने माथुरसंघके मुनि उदय ( उदयतथा बाको नमस्कार किया है, तथा त्रिभुवनगिरि नगर के अजयनरेन्द्र कृत राजविहारको अपतो
चन्द्र
रचनाका स्थान बतलाया है। यया
माथुरसंघ उदयसुणी सरु | पवित्र बाइंदु गुरु गणहरु || पद विजय मयंक मुणि । agrगिरिं पुरुमिवायत | लग्गखं णं वरथद्धि आय ||
सहि पिवसंतें मुणिवरें अजय परिंदो राजबिहारहिं ।
hi विरह चूनडिय सोहहु मुणिवर से सुब धारहिं ॥
पूर्वोक्त समस्त उल्लेखॉपर विचार कर यह प्रतीत होता है कि
१. अपभ्रंश सुगन्धदशमी कथा के कर्त्ता में ही उदयचन्द्र हैं जिनका विनयचन्द्र मुनिने अपनी अनेक रचनाओं में गुरु कहकर स्मरण किया है ।
२. सुगन्धदशमी कथाकी रचनाओ समय कविवर उदयचन्द्र गृहस्थ थे और उन्होंने अपनी पत्नी देवमतीका भी संल्लेख किया है। यही कारण है कि त्रिचन्द्रमुनिने अपनी दो रचनाओंमें उनका गुष रूपसे स्मरण तो किया है, क्योंकि वे उनके विद्यागुरु थे; किन्तु उन्हें नमस्कार नहीं किया, क्योंकि मुनिका गृहस्थको नमस्कार करना अनुचित है। विनयचन्द्र के दीक्षागुरु मुनि बालचन्द्र थे, और उन्हें उन्होंने सर्वत्र नमस्कार किया है ।
३. कविवर उदयचन्द्र बादमें दोक्षा लेकर मुनि हो गये। इसी घटना पश्चात् विनयचन्द अपनी 'घूनडी' नामक रचनाएँ उन्हें मुनीश्वर भो कहा है, और अपने दीक्षागुरु बालचन्द्र मुनिके साथ उन्हें भी प्रणाम किया है । तथापि यह ध्यान देने योग्य बात है कि उन्होंने विद्यागुरुके नाते उदयचन्द्रजीका सर्वत्र आदि उल्लेख किया है, और दीक्षागुरु बालका पश्चात् ।
४. ये तीनों मुनि उदयचन्द्र, बालचन्द्र और विनयचन्द्र माथुर संघके थे। इसका साहित्यिक उल्लेख सर्वप्रथम अमितनतिके ग्रन्थोंमें मिलता है, जिन्होंने अपना सुभाषित रत्न- सन्दोह नामक ग्रन्थ जनरेश के राज्यकाल में संवत् १०५० में रखा था। इस संघ के दूसरे बड़े साहित्यकार अमरकीर्ति थे, जिन्होंने संवत् १२४७ में अपभ्रंश भाषाका छम्मोवएस ( षट्कर्मोपदेश ) रचकर पूरा किया। तीसरे महान् ग्रन्थकार यशःकीति और उनके शिव्य पण्डित रद्द हुए, जिन्होंने संवत् १४८६ के आसपास अनेक अपभ्रंश ग्रन्थोंकी रचना को ( माथुर संघके विशेष परिचय के लिए देखिए डॉ० जोहरापुरकर कृत 'भट्टारक सम्प्रदाय' शोलापुर १९५८ ) देवसेन- वृत्त दर्शनसार-गाया ४०, आदिके अनुसार इस संघकी स्थापना मथुरा में रामसेन गुरुद्वारा की गयी थी, जिसमें मुनियोंको पोछी रखने का निषेध किया गया था।
५. उदयचन्द्र कविने अपनी सुगन्धदशमी कथामें रचना स्थानका कोई उल्लेख नहीं क्रिया । किन्तु उनके शिष्य विनयचन्द्र ने अपनी 'नरउतारी कथा' का रचना-स्थल यमुना नदी तटपर बसा महावन नगर बतलाया है, और अपनी अन्य दो रचनाओं अर्थात् 'निर्झर-पंचमी कथा' और 'चूनड़ी' को तियणगिरि