________________
सुगंधदामी कथा कथा-रचना-अपभ्रंश सुगन्धदशमी कथामें कुल दो सन्धिया हैं । प्रथम सन्धिमें कड़वकोंकी संख्या १२ है, और दूसरी सन्धिौ ९ । प्रत्येक कहयक पंक्तियोंको संख्या औसतन १७ है। सबसे कम पंबितया १, २ में है, जिनकी संख्या ११ है, और सबसे अधिक ३२ पंक्तियाँ २, २ में है। समस्त इक्कोसों कड़वकोंकी कुल पंक्ति-संख्या ३६४ है।
कड़वकोंकी रचना प्रायः पद्धडिया ओर अलिल्लह छन्दोंमें हुई है, जिनमें प्रत्येक चरण में १६ मात्राएं होती है, किन्तु एकके अन्तमें जगण ( लघु, गुरु, लघु ) भाता है, और दूसरेके अन्तम दो लघु मात्राएँ । इन दोनों छन्दोंका इस रचनामें प्रायः मिश्रग पाया जाता है । असे, प्रथम कडनककी ३-४ पंक्तियों में अलिल्लह घोर घोषमें पज्माटिका या पद्धडियाका प्रयोग है। किन्तु दूसरा पाड़बक पूरा अलिल्लहमें है, व तीसरा-चांपा पश्मटिकामे । जहाँ मात्राएँ तो १६ ही हों, किन्तु इन दोनों छन्दोंके धरणान्त मात्राओंका नियम नहीं पाया जाता, यहाँ छन्द पादाकुलक काहलाता है । जैसे २, ७ को प्रथम दो पंक्तियाँ जहाँ चरणान्तमें गुरु मात्रा दिखाई देतो है। कडवक १, ५ में दीपक छन्दका प्रयोग है, जहां दस मात्राएँ हैं व अन्त में लघु । प्रत्येक कहकके अन्तमें जो घसा कहा जाता है, वह सामान्य अपभ्रंश काग्यको रीतिसे सन्धि-भरमें एक-सा ही रहना चाहिए, किन्तु यहाँ इस नियमका पालन नहीं पाया जाता । कवि परिचय और रचना-काल
अपभ्रंश सुगन्धदशमी कथा, उसके कर्त्ताने कुछ आत्मनिवेदन रचनाके अन्त में ( २,९,७-११) में किया है। इसके अनुसार वे अपने कुलरूपी आकाशको उद्योतित करनेवाले-उदयचन्द्र नामधार:-चे, और उनकी भार्याका माम देमतिय या देवमती था। उन्होंने इस कथाको गाकर सुनाया था, जिस प्रकार कि शाहोंमे जमहर और गायकुमारके परिवोंको भी मनोहर भाषामें सुनाया था। सम्भव है. उन्होंने स्वयं इन परित्रोंकी भी रचना को हो । इसके अतिरिक्त इस रचनामें हमें कविके विषय में और कोई वृत्तान्त प्राप्त नहीं होता।
किन्तु उदयचन्द्र का नाम हमें इस प्रकारकी अन्य भी कुछ यसकथाओं में उपलब्ध होता है। जवाहरणार्थ
१-विनयचष्ट्र मुनि कृत 'णिज्झर पंचमी कहा' के आदिमें उदयचन्द्र गुरु और बाल ( बालचन्द्र मुनि) का स्मरण किया गया है
पणविधि पंच महागुरु सारद धरिवि मणि । उदयचंदु गुरु सुमरिवि वंदिय बालमणि ॥ घिणयचंदु फलु अफ्सर णिज्सरपंचमिहि ।
णिसुणहुँ धम्मकहाणउ कहिस जिणागमहि ॥ इसी ग्रन्यो अन्तमें यह भी व्यक्त किया गया है कि इस रामके रचयिता माथुर संघके मुनि विनयचन्द्र थे, और उन्होंने इसको रचना त्रिभुवनगिरिकी तलहटोमें को थी ।
तिहुयणगिरि तलहटी हहु रास रहा ।
माथुरसंग्रह मुणिवरु-विणायचंनि कहिङ ।। विमयचन्द्र मुनि कृत एक 'मरग उसारी कहा' भी है, जिसके आदि भी उन्होंने उपयचन्द्र गुरु और बालचन्द्र मुनिका स्मरण तथा नमन किया है । यथा
उदयचंदु गुणगणहरु गरुचड़। सो मई भावें मणि अणुसरियउ ॥ बालइंदु मुणि विवि जिरंतरु । णरगउतारी कहमि अहंता ।