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प्रस्तावना
१. प्रादर्श प्रतियोंका परिचय ( अपभ्रंश )
(१) यह प्रति जसवन्तनगरके जैन मन्दिरकी है, जो मुझे स्वर्गीय बाबू कामताप्रसादजी के द्वारा प्राप्त हुई थी। यह एक कथासंग्रह है जिप्तमें कुल ३७ रचनाओंका संग्रह है। इनमें सुगन्धदशमो आदि दम कचाएं अपभ्रंशकी और शेष संस्कृत व प्राकृतकी है। इसी प्रतिपर-से मैंने
न् १९२३ में प्रथम बार अपभ्रंश सुमन्धदशम। कथाको प्रतिलिपि की थी और इस आदर्श प्रतिका परिचय अपने अपभ्रंश लिटरेचर शीर्षक लेखम दिया था । ( देखिए-अलाहाबाद यूनिवर्सिटो स्टीज, भाग १, १९२५ )।
(२) यह प्रति भी एक कथाकोशके अन्तर्गत उसके प्रथम १३ पत्रों में पायी गयी। इस कचाकोशकी कुल पत्र संख्या १९४ है । प्रथम पत्र अप्राप्य है। अन्तिम पत्रपर निर्देश है
थर-वय-कहाकोसु सुपवित्तर विरियड त्रिषुहराइणा ।
सोहिंउ हरिसक्कित्ति मुणिमा पुगु सुलरियगिरपत्राहिणा ॥ इससे इस संकलनका नाम 'प्रतकपा कोश' पाया जाता है और यह भी ज्ञात हो जाता है कि उसके संग्रहकार विबुधराय थे और उनकी रचनाका संशोधन हर्षकोति मुनिने किया था । अन्त में संबत् १६७६ का भी निर्देश हे जो सम्भवत: प्रस्तुन प्रतिका लेखनकाल है । इस ग्रन्थके पत्रोंका आकार ११ x ४॥ इंच है, प्रति पृष्ठ ९ पंक्तियाँ है, चारों ओर लगभग एक इंच का हासिया है, और बी वमें भी स्त्रस्तिकाकार स्थान छूटा हुआ है । यह प्रति सम्पादकके संग्रहमें है।
(३) यह भी ९।। ४ ४ इंच आकारका एक कथाकोश है, जिसको पत्र संख्या १५२ है। किन्तु प्रथम एक तथा अन्त के अज्ञात संख्यक पत्र एवं बोच-बीचके अनेक पत्र अप्राप्य है, जिसमें वर्तमान पत्रोंकी कुल संख्या केवल ६७ रह गयी है। सुगन्धदशमी कथाका प्रारम्भ पव २६ पर हुआ, किन्तु वह पत्र अप्राप्त है । २७ पत्रपर मुद्रित प्रतिके १, १, ३ के 'मणहरू' शब्दसे पाठ प्रारम्भ होकर पत्र २९ के अन्तमें 'तं जायवि भायई ( तं जाएवि भावई १, ४, १७) तक अविच्छिन्न गया है और फिर ३०-३४ पत्र अप्राप्त होनेसे ३५ पत्रपर 'ण एण बंधु', (१,१०,२) से पुनः प्रारम्भ होता है, और पत्र ३८ पर 'इम चितवि पुणु' ( २, २, ६) तक जाता है । आगे ३९-४४ पत्र अप्राप्त है। ४५, पत्रपर 'हमि सुअंघणेण' ( २, ७, १०) से 'कम्मु डहेसइ ( २,८,१३ ) तक जाकर पुन: विच्छिन्न हो जाता है। रवनाकी समाप्ति अगले पत्र ४६ पर हुई होगी, किन्तु वह पत्र अप्राप्त है। प्राचीन ग्रन्थोंको यह दुर्दशा देखकर बड़ा दुःख होता है।
(४) यह सुगन्धदशामी कथाकी एक स्वतन्त्र प्रति है, जो पत्र १ पर ' ।।दा ।। ऊ शोधम णमा: ।। सुगन्धदसमी कया । जिण उनीस नवैप्पिणु ॥' इत्यादि रूपसे प्रारम्भ होकर पत्र ११ पर 'तहि णिवासु मह दिउजउ ।। ९ ॥ छ ।। इति सुगन्धदसमी कथा समाप्स ।।' इस प्रकार समाप्त होती है। पत्रोंका आकार १३ ४७ इंच है, प्रतिपत्र १२ पंक्तियां है। यह प्रति काल की अपेक्षा पूर्वोक्त तोनों कथाकोशोंसे पश्चात्कालीन है।
इन प्रतियों के पाठान्तर अंकित नहीं किये गये, क्योंकि उनमें सच्चे पाठान्तर पाये ही नहीं जाते। पाठभेद प्रायः चरण, शब्द, अक्षर व मात्राओं के छूट जाने, मात्राओंमें 'ए' और 'रेफ' तथा 'ओ' और 'उ' के व्यत्यय तथा ण और न के प्रयोगको अनियमितता सम्बन्धी मात्र दिखाई दिये।