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________________ २,६,४] दहमहि फले दहमिहि फले दहमिहि फले क्रुड सायराज । दहमिहि फलेण सेविय सुरेहिं । दहमहि फलेण वरु आयवन्तु । दहमिहि फलेण सयलहं पहाणु । दहमिहि फलेण वरकंतिकाउ । वि किं बहु after | to विदुलहउ जयहं सारु । त अवहिणासु । को डिनरेहिं । aat--तहि तिहुश्रण सारउ aft परभवि होस बीओ संधी fior-महरु विमाणु । सेविज्जइ सत्तावीस हि । देवंग - वत्थ- मूसिय काउ | fers वहिं चामरेहिं । अराव मराहरु गुलुगुखंतु । पडिलय कहि भिण तासु माणु । यि तेत्रो हामिय-गहपहाणु । को विसरि पुज्जइ भुवणि तेण । तं तमु संपञ्चइ बहुपयाह । मयण - विचारत जिणु सुपासु चंदइ अमरु | कम्मु डसर सिद्धि-वरंगण-तण्ऊ वरु ॥ ८ ॥ ६ जा इह दहम करइ तिथ अह एरु । जो बाच सुक्खर भावई । जो earns गुरु गुरायई । जो णिसुरखुइ मणि उबसमन्भावई । सो अचिरेण होइ सुरु मणहरु | सो जि महंतु पुरणफलु पावइ । सो मुञ्च पुत्रक पावई । तासु देहु उ लिप्पड़ आवई । [ २७ ५ १० और सुगन्ध दशमी व्रत के फलसे उसे अवधिज्ञान हुआ किंकिणी- पंक्तियोंकी कलध्वनिसे युक्त मनोहर स्वर्ग विमान भी मिला। इस सुगन्ध दशमी व्रत के फलसे सत्ताईस कोटीश्वरों की सेवा का सुख भी मिलता है । दशमी के फलसे यह शरीर देवांग वस्त्रोंसे विभूषित होता है। दशमीके फलसे देव सेवा करते हैं और धवल चैंबर ऊपर ढोले जाते हैं। दशमीके फलसे श्रेष्ठ आतपत्र ( छत्र ) पास होता है व मनोहर गुडगुडाते हुए ऐरावत हाथीपर आरूढ़ होनेका सुख मिलता है । दशमी फरसे सबके बीच प्रधानता प्राप्त होती है और कहीं भी उसका मानभंग नहीं होता । दशमीके फलसे ही ऐसी उत्तम शरीर कान्ति मिलती है कि उसके तेजके आगे चन्द्रमाकी कान्ति भी फीकी पड़ जाय । अन्य बहुत विस्तारसे वर्णन करने की क्या आवश्यकता है ? संक्षेप में इतना ही कहना पर्याप्त है कि सुगन्ध दशमी व्रत के पालन करनेवाले के समान अन्य किसी मनुष्यका संसारमें आदर-सत्कार नहीं होता । अन्य जो कुछ भी इस जगत् के सारभूत पदार्थ हैं. वे सभी नाना प्रकारके व्रतधारीको प्राप्त हो जाते हैं । ईशान विमानमें भी वह सुगन्धाका जीव देव होकर त्रिभुवनमें सारभूत, कामदेवका निवारण करनेवाले जिन भगवान् सुपार्श्वनाथ की बन्दना करना नहीं भूलता था । अगले भवमें वह देव मनुष्य योनिमें आकर और अपने शेष समस्त घाति अघाति कमको संयम और तपके द्वारा भस्मसात् करके सिद्धि रूपी वरांगनाका पति अर्थात् मोक्षगामी होगा ॥ ८ ॥ ह जो कोई स्त्री या पुरुष इस सुगन्ध दशमी व्रतका पालन करता है वह शीघ्र ही मनोहर देवके पदको प्राप्त हो जाता है। जो कोई इस सुगन्ध दशमी व्रत की कथाका भावना सहित शुद्ध पाठ करता है वह भी महान् पुण्यके फलको पाता है । जो खूब धर्मानुराग सहित इस कथाका व्याख्यान करता है उसे अपने पूर्वकृत पाप कर्मोंसे मुक्ति मिलती है । जो इसे शान्त भावसे 1
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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