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________________ सुअंधदामीकहा [२,५,१७ताज परिण इय व्यत्ति लेवि। उपइटव असेसु विणिव कहेवि । ता राएं दुत्तु विवाह-भोज्जु । वह गेहि करेसमि हउं मि अज्जु । तेमई चोरहु उवलंभु करहु । परिणिय अदिएण सुभ सो जि धरहु । घसा-ता सेठिहे घरि संजोउ किउ संपत्तु राउ परिमिय-सहइ । २० उबईटव कमेण वि सहु जणहि तहि मि चोज्जु सयल वि कहर ॥ ५॥ प्राणहि सुय रायगई झपऊण । ता श्राणिय परिरणा बुत्त सा वि। सा भरण्इ धुभावहु मई मि पाय । ताताएं पाय धुआवियाय | शिव-पायह कर छुड लग जाम । इहु चोरु विजें हउं परिणियाय । एत्थंतरि गिवें साणंदए। तहि सयलहं मणि पाणंदु जाउ । एत्थंतरि पुगरवि किउ विवाहु । जिम कह चोरु ओलविखकरण । ओलक्खहि जे तहुं परिणिया वि। गिलि दिउ मोलक्समिस ताय । धोति संति तहि आर्षियाय । ओलक्खिउ तायहि कहिङ ताम । राउ अएणु होइ इम जंपियाय । गीसेसु कहिउ वित्तंतु तेण । अइपुरणवंति पिउ लधु राज। सहु सयणहि बिउ घर जिणवराहु । लेकर सेट पुनः राजाके पास गया और जो कुछ उसने अपनी पुत्रीसे सुना था वह सब राजाको कह सुनाया । तब सेठकी बात सुनकर राजाने कहा-"अच्छा, मैं आज ही अपनी ओरसे तुम्हारे घर पर विवाहके भोजका आयोजन करूँगा। उसी भोजमें उस चोरको पहिचान लेना, और जिसने तुम्हारी पुत्रीको विना कन्यादानके विवाह लिया है उसे पकड़ लेना ।" इस प्रकार कहकर राजाने सेठके घर भोजकी तैयारी कराई । स्वयं राजा अपनी सभाके कुछ गिने चुने सम्योंके साथ बहाँ पहुँचे। सब अभ्यागत मिलजुल कर सेठके घर में बैठे। सब लोग यहाँ होनेवाले कौतुककी ही चर्चा कर रहे थे ॥ ५ ॥ राजाने आज्ञा दी कि सेठकी वह कन्या आँसे ढंककर वहाँ लाई जाय, जिससे कि वह उस चोरका पता लगा सके । सेठ अपनी कन्याको वहाँ ले आया और उससे कहा- "हे पुत्रि, अब तू उस पुरुषको पहिचान कर जिसने तुझसे विवाह किया है ।" कन्याने कहा- "हे तात, मैं तो अभ्यागतोंके पैर धुलाकर ही उनमेंसे अपने पतिको पहिचान सकूँगी, क्योंकि रात्रिमें ही उनके दर्शन होनेसे मैं उनकी मुखाकृतिसे भलीभाँति परिचित नहीं हूँ।" तब सेठने अभ्यागतोंके पैर धुलवानेका आयोजन किया । कन्या अपने हाथोंसे प्रत्येक अतिथिके पैर धुलाती जाती थी और वे यथा स्थान बैठते जाते थे। राजाको भी वारी आई । राजाके पैरोंका कर-स्पर्श होते ही कन्याने अपने पतिको पहिचान लिया और पितासे कह दिया- "हे पिता, यही वह चोर है जिसने मुझसे विवाह किया है, अन्य कोई नहीं।" कन्याके ऐसा कहने पर राजाने आनन्दित होकर वह सब वृत्तान्त वर्णन करके सुना दिया। उस वृत्तान्तको सुनकर सबके मनमें आनन्द हुआ और वे सब कहने लगे-"यह कन्या बड़ी पुण्यवान् है जिसने स्वयं राजाको अपना पति पाया ।" इस वृत्तान्त के पश्चात् कन्या तिककमतीका राजा कनकप्रमके साथ पुनः विधिवत् विवाह
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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