SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २,५,१६] तादि विवाह-परिक्रमो वि । ता दियि पिय श्रमणोज्जियाई । संताविय हउं तुह जाइयाई । परिणिय चोरई कि ईरिए‍ । तिम जैपिवि दाविउ ते सन्दु | fire areaण । farar देव मुणमि कज्जु । ताम घरि जायज विवाहु । afa चोप दिए । ताराएं शिवि साहुवय ! लइ सयलु खमि महं तुझ एज । जें परिशिय सो दाहि शिरुत् । मोक्कलिता व गउ घरस्मि । बीओ संधी परिदies aहिं मन को वि पुच्छिकार वर ताई । सकिय विद्दु माइयाई । कारण मुणिज्जर कि पितेण । आहरण-वत्थ-कंचुलिय-दच्यु । area rural arखणेण । देसंतरु जाइवि आज अज्जु | अवि संपत करण्याहु | इउ तुम्ह त स होइ अणु ! जेवर सराउ पसंत वषणु । पर तुह सूत्र चोर कहज भेउ । श्रोणि पइ भणि तुरंतु । पुत्रिय सुविy विजयम्मि । पई सई परिणात्रि कय अजुत्ति । saafi freet तासु पाय । [ २३ ५. १५ लक्खहि परिणिय जेरा पुत्ति । rees for मुणामि तस्य । और वहाँ से लौटकर अपने घर आया । आते ही उसने वह सब विवाहका उपक्रम तो देखा, किन्तु विवाहके आगे पीछे भी जो स्वजन परिजनोंकी भीड़भाड़ रहा करती है यह उसे कुछ दिखाई नहीं दिया; सब सूना पड़ा था। उसने जाकर अपनी प्रिय पत्नीको देखा जो विना किसी शृंगार उदास बैठी हुई थी । सेटने इस उदासीका कारण पूछा। तब सेठानी बोली"तुम्हारी इस पुत्रीले मैं बहुत संतप्त हुई हूँ। इसने उन्मादमें आकर अपना विवाह स्वयं कर लिया है। मैं आपसे क्या कहूँ ? इसने अपना विवाह किसी चोरसे किया है । इसका कोई कारण मेरी समझ में नहीं आता ।" ऐसा कहकर सेठानीने अपने पतिको वे आभरण, वस्त्र, कंचुकी आदि समस्त मूल्यवान् वस्तुएँ दिखाई। उन्हें देखकर सेठ भी स्वयं भयभीत हो उठा । वह तो चतुर था, अतः उसने उसी समय वे सब वस्तुएँ ले जाकर राजाको दिखलाई । सेठने राजासे कहा - "हे देव, मुझे यहाँका सब कार्य कुछ भी ज्ञात नहीं है। मैं तो देशान्तर जाकर आज ही वापिस आया हूँ । मेरे आनेसे पूर्व ही इधर मेरे घर में मेरी पुत्रियों का विवाह हो गया है, और यह एक नया सुवर्ण-लाभ हुआ है। किसी चोरने चुराकर ये सब वस्त्राभूषण मेरी कन्याको दिये हैं । किन्तु ये सब वस्तुएँ तो आपकी ही हैं; वे और किसीकी नहीं हो सकती ।" राजाने जिनदत्त सेटके ये वचन सुनकर प्रेमसे हँसमुख होते हुए कहा - "देखो सेठ, यह सब तुम्हारा अपराध तो मैं क्षमा करता हूँ; किन्तु तुम्हारी पुत्रीको उस चोरका भेद बतलाना पड़ेगा | जिसने उससे विवाह किया है उसे निश्चयसे मुझे दिखलाओ। अच्छी तरह यह सब देख भाल कर तुम शीघ्र मुझे सूचना दो ।" इस प्रकार राजाके पाससे मुक्ति पाकर सेट अपने घर गया । सेटने अपनी उस पुत्रीको एकान्तमें लेजाकर उससे पूछा - "हे पुत्रि, तुमने अयोग्य रीतिसे जिसके साथ स्वयं अपना विवाह कर लिया है उस पुरुषको मुझे बतलाओ ।" अपने पिताके ये वचन सुनकर कन्याने कहा - "हे तात, मैं निश्चयसे तो अपने पतिको उसके चरणों का स्पर्श करके ही पहचान सकती हूँ, क्योंकि मैं नियमसे उसके चरणोंका ही स्पर्श करती रही हूँ।" अपनी पुत्रीकी इस बात को
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy