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सीओ संधी णिय सुअ धरेइ अप्पुण पासि । इयर वि कम्माषइ ओम दासि । ता ताएं जाणिउ महु सुमाहे । रण सहेइ सक्किहि बिरहु ताहे। इम चिंतिवि पुणु दुवि दासिमाउ । ऐवित्तिय करिवि समप्पियाउ। एत्तरे रयाइं लेवि साहु । पेसिड रगरगाहें सायराहु । जंतरण कंत पभरिणय विवाहु । विहि जणिहि करेनहि भोयलाहु । ता पिच्छिवि मरगहि सुवरण करण । रणामेरा तिलयमइ कणयवरण | ता दावइ अग्गई शिया करण । सरणई लावर गाई राह परण ! इयर पिणिभंडा दूसराय । विहिरियल धून कय सुंदराय । इय वयणहि केण वि बरिय सा वि | इयर विजा रग लहिय मणहरा वि । ता किज संजोउ विवाहकम्म । मंडउ चज चंडरिए वेइ रम्मु । पुणु तइल-पमुह वरणई वराई । कीयइं विहि जणिहिं. मणोहराई । परिणयण-दिवसि रयणीहि तेण । मुक्किय मसाणि सिंगारिएण। आवेसई को इह वरु पसत्थु । परिणावहि अप्पुणु पुत्ति एत्थु । चउपासहिं दीवय चारि देवि । चउ वारई चउपासहि यवेवि। आईसहं दासिहि इय भरगवि। एक्काझिय तहि सा वणि मुगवि। प्रत्येतरि णिउ सोयल-सिहरि । ता पेक्खइ थिउ उत्तुङ्ग-पपरि ।
रखती थी, किन्तु उस सौतेली पुत्रीको सदैव काममें लगाये रखती थी, जैसे कि वह कोई दासी हो ।
तिलकमतोके पिताने समझ लिया कि सेठानी उसकी पहली पुत्रीको पास रखना उसी प्रकार नहीं सह सकती जिस प्रकार कि वह अपनी पुत्रीका बिरह नहीं सहन करती । इस चिन्तासे सेठने अपने घरमें दो दासियाँ नियुक्त कर दी।
इसी बीच एक और प्रसंग आ गया | राजा कनकप्रभने सेठ जिनदत्तको बुलाकर बड़े आदरसे उन्हें रत्न खरीदनेके लिए देशान्तर जानेकी आज्ञा दी। जाते समय सेठने सेठानीसे कहा "मैं तो राजाको आज्ञासे देशान्तर जाता हूँ, किन्तु तुम अपनी इन दोनों पुत्रियोंका विवाह दो योग्य वर देखकर कर देना जिससे वे सुखसे रहें।" यह कहकर सेठ तो देशान्तरको चले गये। इधर जो भी वर कन्याओंको देखने आता वह उसी कनकवर्ण सुन्दरी तिलकमतीसे ही विवाहकी याचना करता था। किन्तु सेठानी अपनी पुत्रीको ही आगे करके दिखाती और कहती यही कन्या सुन्दरवर्ण और लावण्यवती है। वह अपनी उस सौतेली कन्याकी बुराई करती और उसे कुरूप बनाकर दिखाती । इन वचनोंसे किसी वरने उस कन्यासे ही विवाह करना स्वीकार किया
और उस मनोहर दिखाई देनेवाली दूसरी कन्यासे नहीं। सेठानीने विवाह पक्का कर लिया। विवाहका समय आया । मंडप सजाया गया जिसमें चैवरी लटकाई गई व रमणीक विवाह-वेदी बनाई गई। दोनों कन्याओंकी तेल हलदी आदि विवाहकी उत्तम विधियाँ उत्सव पूर्वक की गई । विवाहके दिन रात्रि होते ही तिलकमतीका शृङ्गार करके सेठानी उसे नगरके बाहर श्मशानमें ले गई और उसे वहाँ बैठाकर बोली "हे पुत्रि, तेरा श्रेष्ठ वर यहीं आवेगा और तुझसे विवाह कर लेगा।" ऐसा कहकर उसके चारों ओर चार दीपक रखकर तथा चारों पार्यों में चार कलश स्थापित करके "दासियोसहित आऊँगो" ऐसा कहकर सेठानी तिलकमतीको श्मशानमें अकेली छोड़कर घर लौट गई। उसी समय राजा कनकप्रभ अपने राजमहलकी ऊँची अट्टालिकापर चढ़कर