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________________ १,११,१४ ] पढ़मो संधी भद्दति सियपंचमि उपसिज्जड़। पंचदिवसि कुसुमंजलि दिज्जइ । गायफलहि फणस-विजजरहि । फोफल-कुंभडहिं रणालियरहि । कुसुमहि पंच-पयार-सुअंधहि । महमहंत-वरघुबहि दीवहिं । पुणु दहमाहिं सुअंधङ किन्नइ । तहिणि आहार वि गियमिज्जा। अहवा पोसहु गऊ सबकेज्जई । एयभत्त तो पियमई किजद । स्यगिहि जिण चउबीस रहविजई । दहबारे दह पुज्जउ किज्जइ । दहमुह-कलस करेवि थपिज्जा । पुणु दहंगु तहे धूउ दहिजई । कुंकुभाइ दहदब्बई जुत्त। किंज्जइ जिग-समलहणु पवित्तउ । पुणु दह भतिहि अक्खय-जुत्तउ । लिहियई मंडल अंसु विचित्तउ । तहि दह दीवय उपरि धरिजई । दह फल मणहर अगई दिज्जई । दह पयार हो विजई किज्जई। दह वारइं जिणणाहु थुगिज। इय विहिए किज्जइ दह वरिसई। दह पाणई परिवडिय-हरिसई । घसा-इय विहाणु मिसुरिणउ पिवद पुराणु रिशमुणहि उजुमरण । (तं तह) श्राहासमि कमिण पयासमि होइ जेम जे करणउ ॥ ११ ॥ "हे पुत्रि तथा अन्य नगरनियासियो, सुनो। मैं तुम्हें आगम और युस सहित यह समस्त विधि बतलाता हूँ जिसके अनुसार सुगन्धदशमीव्रतका पालन और फिर उसका उद्यापन करना चाहिए । मैं यह बतलाऊँगा कि इस व्रतके पालनका फल क्या होता है ॥ १०॥ सुगन्धदशमी व्रतका पालम इस प्रकार किया जाता है-भाद्रपद शुक्ल पंचमीके दिन उपवास करना चाहिए और उस दिनसे प्रारम्भ कर पाँच दिन अर्थात् भाद्रपद शुक्ल नवमी तक कुसुमाञ्जलि चढ़ाना चाहिये 1 कुसुमाञ्जलिमें फनस, बीजपुर,फोफल,कूप्माण्ड,नारियल आदि नाना फलों तथा पंचरंगी और सुगन्धी फूलों तथा महकते हुए उत्तम दीप,धूप आदिसे खूब महोत्सबके साथ भगवान्का पूजन किया जाता है। इस प्रकार पाँच दिन नवमीतक पुष्पाञ्जलि देकर फिर दशमीके दिन जिन-मन्दिरमै सुगन्धी द्रव्यों द्वारा सुगन्ध करना चाहिए और उस दिन आहारका भी नियम करना चाहिए। उस दिन या तो प्रोषध करे, और यदि सर्व प्रकारके आहारका परित्याग रूप पूर्ण उपवास न किया जा सके, तो एक वार मात्र भोजनका नियम तो अवश्य पाले। रात्रिको चौबीसी जिन भगवानका अभिषेक करके दश वार दश पूजन करना चाहिए । एक दशमुख कलशकी स्थापना करके उसमें दशांगी धूप खेना चाहिए | कुंकुम आदि दश द्रव्यों सहित जिन भगवान्की पवित्र पूजा स्तुति करना चाहिए । पुनः अक्षतों द्वारा दश भागों में नाना रंगोंसे विचित्र सूर्य मण्डल बनाना चाहिए । उस मण्डलके दश भागों में दश दीप स्थापित करके उनमें दश मनोहर फल और दश प्रकार नैवेद्य चढ़ाते हुए दश बार.जिन भगवान्की स्तुति वन्दना करना चाहिए । इस प्रकारकी विधि हर्ष पूर्वक मन वचन कायसे पांचों इंद्रियोंकी एकाग्रता सहित प्रति वर्ष करते हुए दश वर्ष तक करना चाहिए । मुनि महाराज कहते हैं, हे राजन् सुगन्धदशमी व्रतके विधानको तुमने सुना । अब आगे इस व्रतकी जो उद्यापनविधि है, उसमें जो कार्य जिस प्रकार करना चाहिए, उसे यथाक्रमसे बतलाता हूँ ॥ ११ ॥
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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