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________________ पढमो संधी १,६,१७ ] पुच्छित कि जिणहरे पउरु खोह। ता एक भएण विचविउ तेत्थु । राएण बुत्त, कहि कहिउ तेगा। देविए तुम्हई वि सुशेसियाई। तं सुणिवि गरिदए कोवरण । जइ मारमि तो जरो तिय-पवाउ। इय चिंतिवि मुक्क गिरत्थ करिवि । उप्पर म्हइसिन्कुच्छिए हवि । बहु रिणिधिराति सा झसियकाय । सा अगाहिं दिणे तरहाई तत्त । मररोग मुणीसर दि जैत । ता सुत्त खंधु पंकर मरेवि । मुश्र मायरि छुहाइ म खीरणगत । तहिं मुन्न पुगण संवरि मसियकाय । कि चोज्जु कवण किं को विरोह । जइ अभउ देइ जिउ कहामि तत्थु । मुच्छाविउ भागवत परवतरण । दिएणउ अपक्कु आहारु ताई। चिंतिउ किउ सयलु अजुत्तु, एण। अच्छई परिहारई दूह ठाउ । वइ अणुहवेवि दुत्तण मरिवि । मुत्र माइरि सेहत्तइ ण कोवि । किमि सिमिसिमंत दुध जाय । पहे सरिहे पइडिय पंकि खुत्त । सिरु धुगइ सकोबई हाचित्त । उभ्यरण रिणवइ-सूवरि हवेवि । ताडिज्जइ लोयहिं किं कियत्त । पुए, मुख चंडालिहिं गम्भे जाय ! वहाँ महान् कोलाहल सुनाई पड़ा । राजाने पूछा कि जिन-मन्दिरमें इतना क्षोभ क्यों हो रहा है ? वहाँ कोई कौतुक हो रहा है या कुछ लड़ाई-झगड़ा उठ खड़ा हुआ है । तब किसी एक नागरिकने भयभीत होते हुए राजासे प्रार्थना की "हे महाराज, यदि अभय प्रदान करें तो मैं सत्य बात कहूँ ।" राजाने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर उसे वृत्तान्त कहने के लिए आदेश दिया । तब उसने कहा "हे महाराज, आपके द्वारा प्रेषित होनेपर रानीजीने मुनिवरको अपश्व आहार दिया, जिसके कारण परवश होकर मुनिराजको मूर्छा आ गई ।" यह वृत्तान्त सुनकर राजाको बड़ा क्रोध आया । चे विचारने लगे "इस रानीने यह बहुत ही अयोग्य कार्य किया है । यदि मैं इसे मार डालूँ तो लोगोंमें यह अपकीर्ति होगी कि राजाने स्त्रीघात किया । और इसे यों ही राजमहल में रहने दूं तो लोग यह दोष दंगे कि राजाने रानीके घोर अपराधके लिए उसे कोई दण्ड नहीं दिया।" ऐसा चिन्तन करके राजाने रानीके सब वस्त्राभूषण छीन लिये और उसे निर्धन करके राजमहलसे निकाल दिया। तब रानी. बड़े क्लेशका अनुभव कर आर्तध्यानसे मरणको प्राप्त हुई। पश्चात् उसने एक भैसकी कुक्षिमें जन्म लिया। उसके जन्म लेते ही माताका मरण हो गया और उसका पालन करनेवाला कोई न रहा । बहुत झूक-झूक कर वह कुछ बड़ी हुई, किन्तु उसका शरीर नितान्त दुर्बल था । उसके शरीरमें कीड़े पड़ रहे थे जिससे उसकी दुर्गन्ध भी आने लगी। एक दिन वह प्याससे तप्त होकर एक सरोवरमें घुसी और वहाँ कीचड़में फैंस गई। उसी समय टस मार्गसे एक मुनीश्वर निकले। किन्तु उन्हें देखकर वह कोपसे सिर हिलाने लगी और उन्हें मारनेको उसे इच्छा हुई । इससे उसके कन्धे भी कीचड़में डूब गये और यह वहीं मृत्युको प्राप्त हुई। भैसकी योनिसे निकलकर उस रानीका जीव, हे राजन् , एक शूकरीके गर्भ में आया। उसे जन्म देनेवाली शूकरीका शीघ्र ही मरण हो गया और यह भूख प्याससे क्षीण-शरीर हो गई। लोग उसको मनमाना मारने पीटने लगे। निदान वह मरणको प्राप्त हुई। शूकरीकी योनिसे निकलकर पुनः उस रानीका जीव साँभरी ( मृगी) की योनिमें आया।
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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