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________________ सुअंधदाहमीकहा [१,५,५इय चितवंताए । मुणि धरिउ ता तीए। पुरण दु-रुलाई । पारविड मुणि ताई। कड हलई दिरागाई। जे डहई अंगाई। जिउ हरई तुरियाई। एवं गिम्ह-किरणाई। तं लेवि मुरिगएण। मणि सरिस अमिएरण। कड आसियत जाम । तण भमिउ तहो ताम। चितिर ला सक्के मि ! चणि अज्जु जाएमि। ता अज्जु जिण-भवरे । अच्छमि अइरमणे। इय चितवंतो वि। जिण-भवण, पचो वि। ताहि दिवसु थिउ एक्क। आहार जा पक्कु । ता तेहिं सावेहि । किउ विएउ तहु तेहि । पुरि खोहु संजाउ। हा हा रउरगाउ घत्ता–उत्तहे देवी तुरिय गय रिणवइ-पासे जा भवण हो । ता दिट्ठ परिदई झत्ति तहि विरह जयंती रिणय-मरणहो ॥ ५ ॥ साहरण करालिय भावियाय । उदिह चित्रे रायाहिराय। एत्यंतरे भाइय सिविड जाम । मुहि एह दुर्गधु वि पउरु ताम । ता गांतरे पुरि पइसंतरण। गिसुपिउ कोलाहलु तहिं गिरण । ऐसी ही कुभावना मनमें धारण करती हुई रानीने मुनिको अपने साथ लिया । घर जाकर उस दुष्ट रानीने रोषसे मुनिको कडुए फलोंका आहार कराया जिनसे अंगोंमें दाह हो और जिनसे अल्पकालमें मृत्यु भी सम्भव हो, जैसे ग्रीष्मकी प्रचण्ड किरणें । मुनि महाराजने उस आहारको भी अमृत सदृश मानकर ग्रहण कर लिया। किन्तु उन्होंने ज्योंही वह कडुए फलोंका आहार किया त्योंही उनके शरीरमें चक्कर आने लगे। तब उन्होंने विचार किया "अब मैं आज वनको तो वापिस जा नहीं सकता। अतः आजका दिन मैं यहींके अति रमणीक जिन मन्दिरमें व्यतीत करूँगा।" ऐसा विचार करते हुए वे जिन-मन्दिरमें आये । वहाँ वे एक दिन रहे जिससे उनका वह आहार पच जाय । मन्दिरमें श्रावकोंने विनयसे उनकी सेवा की । समस्त नगरीमें इस समाचारसे बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और लोग हाय, हाय, करने लगे। वहाँ रानी मुनिके आहारको दुष्ट भावसे निपटाकर झट पुनः अपने पति के पास उपचनमें जा पहुँची । राजाने उसे आते देखा, किन्तु उनके मनमें तत्काल उसके प्रति अरुचि उत्पन्न हो उठी ॥ ५॥ भगवान महावीर राजा श्रेणिकसे कहते हैं-हे राजाधिराज, उस समय यद्यपि रानी वस्त्राभूषणोंसे अलंकृत थी, तथापि वह विकराल दिखाई देने लगी,और उसके चित्तमें भी अधीरता आ गई । भवितव्यता ऐसी होती है । इसी बीच जब रानी समीप आई, तब राजाको प्रतीत हुआ कि उसके मुखसे बहुत दुर्गन्ध आ रही है। अनन्तर जब राजाने नगरमें प्रवेश किया तो उन्हें
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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