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________________ पढमो संधी तहिं पिउ पोमणाहु विषसाइउ । रणं सई सग्गहु इंदु पराइउ । रणे अरि-करिहिं जीह पंचारण। लच्छी सणाहु पारायणु । तहो पिय सिरिमइ सिरि-अग्रोसर । रगं हिमवेतही गंग महासरि । एं पोमावई वि धरणिदहो ! हाहो गरि जिम रोहिणि चंदही । तउ तहो पिययमरहिं पहारिणय । जिम दहमुह मंदोदर राणिय । ताहि जा ते समु रज्जु करतउ । ताम बसंतमासु संपत्तउ। धत्ता-कल-कोइल-सहहिं महुअरविंदर्हि रणं आलावरिण वजह । सुअपढणसहासहिं बहुविहभासहि गड वसंतु रण गज्जइ ॥२॥ रे ३ एहु जगुरु गच्चई रण काई। वियु मेहहिं को सरवर भरेइ । विए, कहिं गिबंधइ को वि कछु । मई विष्णु को जरा बहु भासाहि । एत्थंतरे जाणेवि जणे वसतु । ता तरूणिहिं पारभिउ सुरम्मु । मई विष्णु उग्गिरणय-चित्तु पाई। विगु सुहबहि को संगरु करे । जिणदेवह विणु को कहइ दन्न । गच्चावइ चच्चरि रासयहिं । श्रायउ विरहिरिण-सोसणु वसंतु | मुरिण-मयगुद्दीवण गेयकम्मु | __उस वाराणसी नगरीका सुविख्यात राजा पद्मनाथ था, जो अपने प्रभावसे ऐसा दिखाई देता था मानो स्वर्गसे स्वयं इन्द्र ही भूतल पर आ उतरा हो । वह अपने शत्रुरूपी हाथियोंके लिए सिंहके समान शूरवीर योद्धा था और अपनी राज्यलक्ष्मी सहित साक्षात् नारायण सा प्रतीत होता था। उस पद्मनाथ राजाक्री प्रिय रानी श्रीमती थी जो श्री अर्थात् लक्ष्मीसे भी अधिक सुन्दर थी; मानो हिमवान् पर्वतकी स्वयं गंगा महानदी हो, धरणेन्द्र देवकी पद्मावती देवी हो अथवा शिवजीकी पत्नी गौरी ब चन्द्रमाकी पत्नी रोहिणी हो । श्रीमती पद्मनाथ राजाकी प्रियतम रानियों में प्रधान थी, जैसे दशमुख अर्थात् रावणकी रानियोंमें मन्दोदरी प्रमुख थी। पद्मनाथ जब श्रीमतीके साथ बनारसमें राज्य कर रहे थे, तब वसन्त मासका आगमन हुआ। उस समय कोकिलोंकी ध्वनियों और मौरोकी गुंजारसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आलापिनी वीणा बज रही हो। शुक अर्थात् तोतोंके सहस्रों प्रकारके पाठों और नानाविध स्वरोंसे ऐसा लगने लगा मानो घसन्त नट बनकर गरज रहा हो ॥ २ ॥ वह बसन्त रूपी नट क्या कह रहा था सो सुनिए-"अरे, अरे, ये लोग नृत्य क्यों नहीं कर रहे ? मानो मेरे बिना वे चित्तमें निरुत्साह हो रहे थे। विना मेघोंके सरोवरोंको कौन भरे और मुभटोके विना युद्ध कौन करे ? कवियोंके विना काव्योंकी रचना करनेवाला तथा जिनदेवके बिना द्रव्योंका कथन करनेवाला मला अन्य कौन है ? इसी प्रकार मेरे विना विविध भाषाओं में लोगोंको रासों सहित चर्चरी नचाने वाला और कौन रखा है ?" ऐसा समझकर ही लोगोंके बीच विरहिणी स्त्रियोंको सन्ताप उत्पन्न करनेवाला वसन्त मास आया । ___ वसन्तके उत्साहमें तरुणी स्त्रियोंने सुरम्य गीत गाना प्रारम्भ किया जिससे कि मुनियों के
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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