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प्रस्तावना
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जा चुका है। चूंकि श्रुतसागरका काल १६वों शती सिद्ध होता है, अतः प्रस्तुत रचना उससे पश्चात्कालीन है। इस कविको और भी अनेक कृतियाँ पायी जाती है, जिनमें उनके रचनाकालका भी उल्लेस्त्र मिलता है, व अन्य कुछ और भी परिचय । तदनुसार उनका उपनाम काला था, और च सांगानेर ( राजस्थान ) के निवासी थे। उन्होंने हरिवंशपुराणको रचना सं० १७८७ में, यशोधर चरित्रकी सं० १७८१ में, पद्मपुराणकी १७८३ में, व उत्तरपुराणकी १७९९ में की थी। उनको अन्य रचनाएँ धन्यकुमार चरित्र, ब्रतकथाकोश, चम्बूचा रस, गोदीसी एसा आदि भी मिगी है: साकी आपामें राजस्थानी व विशेषत: जयपुरकी ढुंवारी भाषाको पुट पायी जाती है। इस रचनाका प्रस्तुत पाठ इसको एक मुद्रित प्रतिपर-से तैयार किया गया है, जो कस्तूरचन्द छाबड़ा, भादधा ( जयपुर )न्नारा संगृहीत तथा जिनवाणी प्रेस, कलकत्ता-द्वारा दीपावली संवत् १९८६ में द्वितीय बार मुद्रित कही गयी है। इसमें प्रस्तुप्त सम्पादकको केवल साधारण मुद्रणादि दोषोंके संशोधनको आवश्यकता पड़ी है।
अपभ्रंश व संस्कृत, गुजराती, मराठी और हिन्दी कथानकोंको संगति अपभ्रंश संस्कृत गुजराती मराठी हिन्दी सन्धि १कडवक ३-.
१- ९ ३०-२२
२,१२-२१
७ -१. १०-५ १६-२५
२२-२३ २१-२५ २६-३६ ३६-४३ ४३-४१ ५०-५४ २५-५४
१२-१३ १५-१९ २०-२६ २७-३६
३, १५-२२
३५-३६ ४०-४२
४०-४२ ४३-४५ ४४-४८ ४९-५८
४, ८-११ ५, १२-१७ ४, १८-२२
११
१६-७३
४४- ४५-५०
सन्धि -२
५५-६६
७४ - ८३ ६ -१०६
५, १-१३ ५, १५-२८
५१-६१ ६१-९१
१०७-११९
., १०-२०
१२-९१
F५-१०३
१२०- २२ १२३-१३६
१९ १००-१५५
१०४-104 ११०-१२०
८,१०-१३
१३७-१२
९, -१३ १, १४-३२ १, ३३-११
१२१-१२६ १२७-४० १४१-१४२
१२१-१३५
१५७-०६ १६१