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________________ २२ सुगंधदशमी कथा महावोर, पद्मावती व षोडशकारण भारती। इन रचनाओंमें जो रचनास्थलोंका उल्लेख आया है, उसपर से कषि विदर्भप्रदेशक्ती सिद्ध होते हैं। स्वभावतः जिनसागरको भाषामें वैदभी मराठोकी अनेक विशेषताएं दिखाई देता है । उदाहरणार्थ प्रस्तुत ग्रन्थमें (११) का म्हणून के लिए काम्हुनि (११) म्हणून के लिए म्हुनि ( ५७ ) टुकानाहूनके लिए दुकानूनि ( ६६ ) सर्वनामोंके स्त्रोलिंगी रूप एकारान्त-जैसे जे एकता ( जो एकता ) बोलेचना ते ( बोलचेना तो ) आज्ञाध नियाने दोघंतर रूप, जैसे - बदवीस ( वदव ) आई (जा), साखरका उच्चारण साकर, अनु. स्वारों का प्रयोग कम मात्राम आदि ऐसी प्रवृत्तियां हैं जो आज भी विदर्भ की बोली में प्रचलित हैं। __कारक विभक्तियोंम यहां प्राचीनताके लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे शारदेसी ( शाददेला दि०), घमरे ( चमराने तृ) दुकानूनि ( दुकानाहून पं० ) सिंहासनी ( सिंहासनावर स० ) भोजना लाग ( भोजना करता च. ) मनाभाजि ( मनांत स० ) । यहाँ स्पष्टतः हमें अपभ्रंशकी प्रवृत्तियों तथा परसों के प्रादुर्भावका दर्शन होता है । शब्दावलि में भी गंगावग (वेणी), निवाडी (निर्णय), कूड ( कूट-प्रोध), बोजा ( आदरसे ), घाला ( तप्त ), ओटीत ( आंचलसे ), बिरालो ( उद्विग्न ), सेजारिनी ( पडोसिमें), मलवट ( कुंकुमकी रेखा ) आदि शान्दोम देशी प्रभाव दिखलाई पड़ता है। सामान्यतः रसता सर्वत्र ही संस्कृत व अपभ्रंशसे प्रभावित है। ग्रन्थके संशोधनमें तीन हस्तलिखित प्रतियोंका उपयोग किया गया है जो इस प्रकार हैं - क - यह सेनगण गन्दिर, नागपुर के शास्त्रभण्डारकी है, जिसका क्रमांक १२ है । इसमें 'x ६' आकारक ३२ पत्र सिले हुए है, जिनमें प्रस्तुत रचना पत्र १३ से २४ तक है। इसी कर्ताको जिनकथा व अनन्तव्रत कथा तथा ब्रह्म शान्तिदासकृत निरमाइलरास भी इसमें संगृ होत है। प्रति लेखनके कालका निर्देश नहीं है। ख- यह प्रति श्री भा० स० महाजन, नागपरके निजी संग्रहकी है। मौक ११ । इसमें ७१-५३" आकारके ७२ पत्र मिले हुए है। प्रस्तुत रचना पत्र १ से १२ तक है 1 तत्पश्चात् इसी लेखक त्यवत और अनन्तखत कथा, तथा बुफ्भकृत नववाड, मेघराजकृत भरतक्षेत्र विनति, कान्हासुत कमलकृत बलभद्र विनति, महीचन्द्रकृत कालीगोरी बाद तथा पद्मावती.सहस्रनाम, इन रचनाओंका संग्रह है। इनके अतिरिक्त पद्मावती, वृषभनाथ, चन्द्र नाथ, पाश्वनाथ, सिद्ध तथा मक्तागिरिके पूजापाठ भी यही सम्मिलित हैं । लेखनकालका निर्देश नहीं है। __ ग - यह प्रति भी सेनगण भण्डार नागपुरकी है, और पड़ी महत्त्वपूर्ण है। इसमें १०३" x ६" माकारक २३ प ( ४६ पृ० ) है, जिनमें कथावर्णचके साथ साथ विविध प्रसंगोंके रंगीन चित्र भी है । आश्चर्य नहीं जो यह लेखन और चित्रण स्वयं प्रन्यकर्ताका हो । इस सम्पूर्ण प्रतिके चित्र यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं। उनका वर्णन भो अन्यत्र दिया जा रहा है । १०. सुगन्धदशमी कथा : हिन्वी हिन्दी सुगन्धदशमो कथाको रचना दोहा-चौपाई छन्दोंके १४३ पद्योंम हई है। चौपाइयों के बीच. बीच में दोहे गाये हैं, किन्तु उनको संस्था एकरूपता नहीं है। उदाहरणार्थ आदिमें आठ चौपाइयोंके पश्चात् एक बोहा आया है । फिर पन्द्रह चौपाइयों ( १०-२४ ) के पश्चात् दो दोहे आये हैं। फिर छह भोपाइयोंके पश्चात् एक दोहा है । इस प्रकार अनामसे रचनामें कुल एक सौ इक्कीस चौपाइयाँ और उन्नीस दोहे हैं । बीच में तीन पञ्च ( ६७.६९ ) चौदह मात्रात्मक अन्य छन्दके हैं। ___इस कथाके रचमिताने अपना नाम ग्रन्यके अन्समें खुस्याल ( खुशाल या ग्लुशालचन्द्र ) प्रकट किया है। उन्होंने वहां यह भी कह दिया है कि उनकी इस रचनाका आधार श्रुतसागर-कृत सुगन्धदशमी कथा है। यह वही संस्कृत कथानक है, जो यहाँ भी संकलित किया गया है. और जिसका परिचय भी अन्यत्र दिया
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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