SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना Pro तभी पाटलिपुत्रका राजा जितशत्रु विजय यात्रा निमित अपनी चतुरंगिणी सेनासहित वहाँसे निकला, और उस सुन्दर उद्यान में ही अपना पड़ाव डालकर विश्राम करने लगा। सैन्यके कोलाहरूले जाकर कन्या अपनी गौमों को देखने चल पड़ी। उसके साथ वह उद्यान भी चल पड़ा। इस आश्चर्य से प्रभाधित होकर राजा था। उसके मन्त्रीने परामर्श कर उससे पूछताछ की और उसका समस्त वृतान्त जानकर उसके पिताको बुलाकर उसकी अनुमति से उस कन्या के साथ अपना विवाह कर लिया । उद्यान के अतिशय के प्रसंग राजाने अपनी इस नयी वधूका नाम आरामशोभा रखा। अपनी सौतेलो पुत्रो के इस सोमाभ्यसे उसकी विमलाके चित्तमें ईर्ष्या और विद्वेषकी अग्नि भड़क उठी और उसने सोचा कि यदि किसी प्रकार उसकी मृत्यु हो जायें, तो राजा उसकी औरस कन्याको हो कदाचि अपनी रानी बना ले। इस आशा से उसने विष मिश्रित मोदक बनाये, और इन्हें अपने पति के हाथों आरामशोभाको खानेके लिए भेजा। किन्तु जब वह विश्वास कर रहा था, तब उस नागद्देघने इस वृसान्तको जामकर, उन दिपम मोदकोंके स्थान पर अमृत मोदकोंसे उस पात्रको भर दिया। उन मोदकोंको राजभवन में बड़ी प्रशंसा हुई। घर लौटने पर उससे सब वृत्तान्त सुनकर, उसकी पत्नीको बड़ी निराशा हुई । उसमे दूसरी बार हाळाहम विवमिश्रित फेनियोंकी पिटारी भेजी, जिसे पूर्ववत् उस नागदेवने अमृतफेनोसे बदल दिया । तृतीय बार तालपुट विषयुक्त मांडे भेजे गये, जो पुनः नागदेव के प्रसादसे अमृतमय होकर राजभवन में पहुँचे । पत्नी के निर्देशानुसार इस बार ब्राह्मणने अपनी गर्भबलो पुत्रोको साथ लिवा ले जानेका भी आग्रह किया । विवश होकर राजाको अनुमति देनी पड़ी। अपने पितृगृहमें आरामशोभाने पुत्रको जन्म दिया तत्पश्चात् अबसर पाकर विमासाने उसे अपने घर के पीछेके कुएँ में ढकेल दिया और अपनी पुत्रीको राजकुमार के समीप सुलाकर उसे ही आरामशोभा प्रकट किया । जब परिचारिकाओंने आरामशोभा को अपने सौन्दर्यादि गुणोंसे होन देखा तो वे बहुत घबराय । उधर राजाकी ओर से मन्त्री आया, और राजकुमार सहित उसकी मालाको पाटलिपुत्र लिवा ले गया । राजाने भी उसे अपने स्वाभाविक रूप तथा अनुगामी उद्यानसे रहित देखकर खेद और आश्चर्य प्रकट किया। पूछने पर नयी आरामशोबाने कपट उत्तर देकर प्रसंगको टाल दिया । उधर कूपमें गिरने पर सती आरामशोभाने नागदेव का स्मरण किया। उसने तुरन्त आकर उसकी रक्षा को, और उसे वहीं पातालभवन बनाकर रखा। कुछ काल पश्चात् आरामशोभाने अपने पुत्रको देखनेको इच्छा प्रकट की । नागदेवने उसे इस प्रतिबन्धके साथ अनुमति देकर राजभवन में पहुंचा दिया कि यदि वह यह सूर्योदय होने से पूर्व लौटकर नहीं आयी तो उसके पास एक भूतनाग गिरेगा और फिर उसे उसके दर्शन न होंगे। आरामशोभाने यह स्वीकार किया और घात्रियोंके बीच सोये हुए पुत्रको लाड़-प्यार कर उसपर अपने दिव्य उद्यानके पुष्पोंकी वृष्टि करके वह घर आ गयी। प्रभात होनेपर घात्रियोंने उन पुष्पों को देख राजाको खबर दी। राजाके पूछने पर उस बनावटी आरामशोभाने कह दिया कि मैंने ही अपने दिय उद्यानके पुष्पोंको अपने पुत्रपर बिखेरा है राजाने कहा कि तुम उस उद्यानको लाकर मुझे दिखलाओ। किन्तु उसने उत्तर दिया वह उद्यान वहाँ दिनको नहीं लाया जा सकता । राजा पुनः शंकित होकर रह गया । । इस प्रकार तीन दिन बीत गये। चौथे दिन राजा सतर्क रहा और ज्योंही आरामशोभा पुत्रपर फूल बिखेर कर जाने लगी, त्योंही राजाने उसका हाथ पकड़ लिया, और उसके प्रार्थना व आग्रह करनेपर भी उसे नहीं छोड़ा, प्रत्युत समस्त वृत्तान्त जानना चाहा । विवश होकर आरामशोभाने अपनी विमालाका वह कपटजाल प्रकट कर दिया। इतने में सूर्योदय हो गया और केशपाशसे मृतमरण गिरा। इसे देख आरामशोभा मूखित हो गयो । सचेत होनेपर उसने अपने रक्षक नागदेवका सब वृत्तान्त कह सुनाया । राजाने रुष्ट होकर उसकी कपटिनी भगिनीको बाँधकर कोड़े मारना प्रारम्भ किया, व उसके पिता और विमाताको नाक-कान काटकर देश से निकाल देनेका आदेश दिया। किन्तु आत्मशोभाने प्रार्थना कर उन
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy