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________________ प्रसाधना १३ वृष्टि । अतः वह बड़े कष्टसे अपने घर पहुँच पायी । सौभाग्यसे उसकी बहिनोंकी गाड़ोका एक चाक निकल पड़ा था, जिससे वे भी बहुल विलम्बसे आयों और सिन्ड्रेला उनके कोपके प्रसादसे बच गयो। सिन्ड्रेलाके लौटनेपर उसकी वह देवी माता सम्मुख वा उपस्थित हुई, और बोली "बेटो तूने मेरी बातका ध्यान नहीं रखा, जिसके कारण तुझे इतना क्लेश भोगना पड़ा। अच्छा, यह जो तू अपनी छातीमें छिपाये हुए है, वह क्या है ?" सिन्ड्रेलाका यह दिग्ध बेश तो बदल गया था, किन्तु न जाने क्यों उसने अपनी वह बची हुई कांचकी एक जूती अपनी अंगियामें छिपाकर रख ली थी, और वह अभी भी ज्योंकी त्यों बनी हुई थी। उसे देखकर देवी ने कहा, "अच्छा यह एक तो है, पर इसकी जोड़ी कहाँ है?" सिन्ड्रेला घबरायो। किन्तु देवी ने कहा, "भला तुम असावधान तो हो, परन्तु जो मेरो देनको इसनो निशानो बचा ली है, वही तुम्हारे भाग्यको विधायक होगी।" इतना कहकर देवो अदृश्य हो गयो । उघर दूसरे ही दिनसे राजकुमार याकुल होकर खोज करने लगा-यह कांच की जूसी किसके पैरफी है ? उसने घोषणा करा दी कि जिसके परमैं वह जूसी लोक बैठ जावेगी, वही उसकी प्रिम रानी होगी। क्रमशः एकसे एक राजकुमारियों व अमीरों-जमोदारों व सेठ-साहूकारोंकी कन्याओंने अपने-अपने भाग्यको परीक्षा की, किन्तु बह जूती किसोके भी परमें ठीकसे नहीं बैठो। सिन्ड्रेलाकी दोनों सौतेली बहिनोंकी भी बारी आयी, किन्तु उन्हें भी निराश होना पड़ा 1 सिन्ड्रेला देख रही थी। उसने कहा, "क्या में भी प्रयत्न करू ?" इसपर उसको बहिनें हंस पड़ी । किन्तु राजपुरुषने कहा, "मुझे इस जूतीको सभी युवतियों के पैरमें पहनाने का आदेश है, इसलिए तुम भी इसे पहनकर देखो।" सबके आश्चर्यका ठिकाना न रहा जब सिन्ड्र ला. का पैर खटसे उस जूतीमें भली प्रकार बैठ गया। यही नहीं, उसने अपनी कमियामे-से उसके जोड़ा जूती निकालकर अपने दूसरे पैरमें पहन ली । अब कोयलेके कोने में रहने वाली सिन्ड्रेला राजमहलको रानी बन गयी। यही कथानक जर्मनी में कुछ हेर-फेरके साथ लोक प्रचलित पाया जाता है। ऐसी लोक-कथाओंका एक संग्रह जेकब लुडविक कार्ल निम ( १७८५-१८६३ ) कृत 'दि किंडर उण्ड हाउसमार्खन' को तोच जिल्दी में प्रकाशित हआ था. जिसका अमवाद अंगरेजीमें 'निम्त टेल्स' में पाया जाता है। इस संग्रह में अश्पुटैलकी कहानीका सार यह है एक धनिककी पत्नीने मरते समय अपनी एक मात्र पुत्रोको पास बुलाकर कहा - "बेटी, तुम सदा भली रहना, मैं स्वर्गसे भी तुम्हारो देख-रेख करूंगी।" माताको मृत्युके पश्चात् पुत्रो प्रतिदिन उसके श्मशान पर जाकर रोया करती थी। ___ उसके पिताने शीघ्र ही दूसरा विवाह कर लिया। इस नयो पलीको पहलेसे दो पुत्रियां थीं, जो देखने में सुन्दर, किन्तु हृदयसे बहुत मैली थों। वे अपनी सौतेली बहनसे घृणा करतो, उससे घरका सब काम. काज करातों, और रूला-सूस्खा खानेको देती थीं । वह रसोईघरके राखके उरके पास सोया करती थी, जिससे उसका नाम अश्पुटैल पड़ गया । एक बार वह पनिक किसी मेलेमें जा रहा था। उसने अपनी पुत्रियोंसे पूछा कि वे मेलेसे क्या मंगाना चाहती है। एकने अच्छसे अच्छे घस्त्र और दूसरीने हीरा-मोती लाने को कहा। अपुटेलसे पूछनेपर उसने कहा-"पिताजी, जब आप घर लौटने लगे, तब जो वृक्षको डाल आपके टोगसे उलझ जाये, उसे ही मेरे लिए लेतं आइए, जस मुझे और कुछ नहीं चाहिए।" घनिफने वैसा ही किया। घोड़ेपर सवार होकर लोटले समय एक झुरमुट के इनमें उसके टोपसे हैजल ( IIazel ) वृक्षको डाल टकरायी । इस उसे हो तोड़ कर रह अपनी अमपुटेल के लिए लेता आया । अट्पुटैलने उसे ले जाकर अपनी मा के श्मशान पर लगा दिया, तपा रो रोकर उसे अपने आंसुओंसे सौंच डाला ।। कुछ समय पश्चात् यहाँके राजाने एक तीन दिनका उत्सव मनाया, जिसमें राजकुमारका स्वयंवर भी होना था। अश्पुटलकी दोनों बहिनोंको उस उत्सबमें जाना था, अतएव अश्पुटलको उनके बालोंकी कंघी
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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