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________________ सुगंधदशमी कथा अपने स्कूलके दिनों में पढ़ा था। अच खोजनेपर यह कहानी मुझे "दि स्लीपिंग ब्यूटी एण्ड अदर फेयरी टेल्स फाम दि ओल्ड फ्रेंच, रिटोल्ड माई ए. टी. विचलर-को उच", नामक कथा संग्रहमें मिल गयी । इस ग्रन्थके आविमें कहा गया है कि ग्रन्थकारने प्रस्तुत कथानक फ्रेंच भाषाके के बिने डे फो' नामक कथा-कोशके इको सगों में के मशः मासे लिया है। उसके कता बार्स पेरोल्टका जीवन-काल सन् १६२८ से १७०३ तक माना गया है। संक्षेपतः यह कथानक इस प्रकार है एक धनिकको एक सुन्दर कन्या थी। उसके बचपन में ही उसकी माताकी मृत्यु हो गयी। पिताने दूसरा विवाह किया । इस पत्नौके साथ उसकी पहलेकी दो पुत्रियां भी आयौं। सौतेली माँको अपनी सौतेली पुत्रीसे बड़ा प हमा, क्योंकि उसके समक्ष उसको वे दोनों पुत्रियाँ रूप और मुणोंमें बहुत फोकी पड़ती थीं । मा उस सौतेलो लड़कीसे घरका सब काम-काज कराती, उसे फटे-पुराने कपड़े पहनाती तथा सूखा-रूखा खानेको देती। किन्तु वह अपनी दोनों पुत्रियोंको खूब सज-धजसे रखती, और उनकी भी चाकरी उस सौतेली लड़कीसे कराती । इस लड़की को जब घरके सब काम-काजसे कुछ अवकाक्षा मिलता, तब वह घरके एक कोनमें जहाँ कोयला रखा जाता था, जाकर पड़ आती थो। इसीसे उसका नाम "सिन्ड्रेला' पड़ गया। (सिंडर- कोयना )। एक बार उस नगरके राजकुमारने नस्पोत्सवका आयोजन किया, जिसमें राज्यके समस्त धनी-मानी सिमन्त्रित थे। धनिककी दोनों युवती कन्याओंको भी निमन्त्रण मिला, और वे खूब ठाठ-बारसे नियत समयपर मृत्योरसबमें पहुँचीं। किन्तु उस बेचारी सौतेली लड़की को अपनी उन बहिनोंकी तैयारीका काम तो खूब करना पड़ा, परम्नु उत्सवमें जानेका उसका भाग्य कहाँ ? वह अपने उसी गन्दे कोने में बैठ सिसकसिसककर रोने लगी। रोते-रोते अर्धचेतसी अवस्यामें जब उसने आँखें पोंछकर देला तो अपने सम्मुख एक दिव्य मूर्तिको खड़ा पाया । उसने बड़े प्यार से पूछा, "बेटी, रोती क्यों है ? तू क्या चाहती है ?" इस प्यारकी शेलीसे सिन्ड्रेलाका गला और भो मैंघ गया और वह कुछ भी बोल नहीं सकी । तच देवीने स्ययं पूछा, "क्या दू राजकुमारके नुत्योत्सबमें जाना चाहती है ?" सिन्ड्रेलाके है। कहनेपर देवी ने अपनी जादुको छड़ोसे छूकर एक कुम्हड़ेको सुन्दर गाड़ी का रूप दे दिया, नहोंके घोड़े और प्यादे बना दिये, और कन्याके मेले-कुचले वस्त्रों को सुन्दर बहुमूल्य वेशा व रत्नमय आभूषणोंमें बदल दिया । सिन्ड्रेलाका रुप-सौन्दर्य अच किसी भी राजकन्यासे होन नहीं रहा । दिव्य रूप व वेश-भूषा तथा रामोचित वैभवके साथ सिन्ड्रेला नृत्योत्सवमें गयो । उत्सवमें राजकुमार सिन्ड्रेलाकी ओर ही सबसे अधिक आकृष्ट हुआ । उसने उसोका सर्वाधिक आदरसत्कार किया और उसी के साथ बहुलतासे नृत्य भी किया। अकस्मात् ज्योंही सिन्ड्रेलाने पीने बारह बजे रात्रिकी घण्टी सुनी, स्योंही वह लौटने के लिए अधीर हो उठो, क्योंकि देवीने उसे खूब सचेत कर दिया था कि उसका वह दिव्य वैभव अर्धरात्रिके पश्चात् नहीं ठहरेगा। वह राजकुमारसे तुरन्त एटा लेकर तथा उसके आग्रह करने पर पुन: दूसरे दिन नृत्योत्सबमें आनेका वचन देकर, अपनी बहिनोंके लौटनेसे पूर्व ही घर आ गयी, तथा अपनी फटी-गुरानी वेश-भूषामें उनके आनेको प्रतीक्षा करने लगो । दूसरे दिन पुनः उसी प्रकार, किन्तु उससे भी अधिक सजधनके साय यह नृत्योत्सबमें पहुँचो । आज राजकुमारने अपना सारा समय उसीके साथ व्यतीत किया । यह भी इतनी तल्लीन हो गयो कि उसे अर्धरात्रिसे पूर्व भर लोटन का ध्यान ही न रहा । अकस्मात् जब पूरे बारह बजेकी घण्टो बजनी प्रारम्भ हुई तब वह सचेत हुई और घबराकर तुरन्त वहाँसे भागी। उस जल्दी में उसके परका एक कात्रका जूता निकलकर वहीं रह गया, जिसे राजकुमार ने बड़े चासे उठाकर अपने पास रख लिया। ____ अब घर लौटने के लिए सिन्छे लाके पास न वे गाड़ी-घोड़ा थे और न प्यादे । उसकी पोशाक भी अपने स्वाभाविक मैले-कुचले कपड़ों में बदल गयी थी। रात अंधेरी, मार्ग बहुत पथरीला और ऊपरसे घनघोर
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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