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प्रस्तावना
घनुबंदी आचार्यका मित्र था। अन: राजाने उससे पोरवपूर्ण मित्रवत् व्यवहार किया। इस पापके फलसे वह मरकर क्रमशः शृगाल, वृक, गुध्र, व्याल व मयूर हमा। प्रत्येक जन्ममें उसकी पतिव्रता पत्नीने उसके पूर्वजन्मोंका स्मरण कराया, जिससे पाषण्डोके साथ सद्ध्यवहारका घोर पाप क्रमश: क्षीण होते-होते वह मयूरके जन्ममें राजा जनकके अश्वमेध यज्ञमें जा पहुँचा । उन्होंने यज्ञानुष्ठानसम्बन्धो अघभूषस्नानके समय उसे भी स्नान कराया, जिसके पुण्यसे वह अगले जन्ममें स्वयं राजा जनकका पुत्र हुआ 1
वैदिक परम्परा के पुराणों में विष्णुपुगण अपेक्षाकृत अधिक प्राचीन माना जाता है; अतः महाभारतके समान इस पुराणके वृत्तान्तका प्रभाव भो पूर्वोक्त जैन-पानोपर पड़ा हो तो आश्चर्य नहीं। ४. कथाका उत्तर भाग
प्रस्तुत सुगन्धदशमी कपाका दूसरा भाग, जो दूसरी सन्धिमें वर्णित है, अपनो मौलिकता और रोचकलाको दृष्टिरो विशेष महत्त्वपूर्ण है। सुगन्धदशमी अतके पुण्पसे दुर्गन्धा अपने अगले जन्म में रत्नपुरके सेठ जिनदत्तको रूपवती पुत्री तिलकमत हुई। किन्तु उसका पूर्वकृत कुछ पाकर्म अभी भी भोगनको शेष रहा था । अतः जन्म के कुछ ही दिन : जसको परकरेगह होगा। पिताने तिवाह किया, और उससे भी एक कन्या उत्पन्न हुई तेजमती। सौतेली मां अपनी पुत्री को बहुत प्यार करती, और तिलकमतीसे उतना ही द्वेष । इस कारण इस कन्याका जीवन बड़े दुःखसे उप्रतीत होने लगा । युवावस्था प्रायी और पिताको कन्याओंके विवाहको चिन्ता हुई 1 किन्तु इमी समय उन्हें वहाँके नरेश कनकप्रभका आदेश मिला कि वे रत्नोंवो स्वरीद के लिए देशान्तर जायें । जाते समय सेठ पत्नीसे कह गया कि सुयोग्य वर देखकर दोनों कन्याओंका विवाह कर देना । जो बर आते वै लिलकमतीके रूपपर मुग्ध होकर, उसीकी याचना करते । किन्तु सेठानी उसको बुराई कर अपनी पुत्रीको हो आगे करती, और उसी को प्रशंसा करती। तो भी बरके हठसे विवाह तिलकमतीका ही पका करना पड़ा। विवाह के दिन सेठानी सिलकमतीको यह कहकर श्मशानमें बैठा आयो कि उनको कुल-प्रथाके अनुसार उसका वर वहीं आकर उससे विवाह करेगा। किन्तु घर आकर उसने यह हल्ला मचा दिया कि तिलकमती कहीं भाग गयो । लग्नको वेला तक उसका पता न चल सकने के कारण वरजा विवाह तेजमतीके साथ कराना पड़ा। इस प्रकार कपटजालद्वारा सेशानीने अपनी इच्छा पूरी की।
उधर राजाने महलपर चढ़कर देखा कि एक सुन्दर कन्या घोर रात्रि में श्मशानमें अकेली बैठी है। वह तुरन्त उसको पास गया और पूछ-ताछ कर व सब बात जान-समझकर उसने स्वयं उससे अपना विवाह कर लिया। पूछनेपर राजाने अपना नाम पिण्डार ( बाल-महिषोपाल ) बतलाया और यही नाम कन्याने अपनी सौतेली माको भी बतला दिया । एक पृथक् गृहमें उसके रहनेको व्यवस्था कर दी गयो । राजा रात्रिको उसके पास आता, और सूर्योदयसे पूर्व ही चला जाता । पतिने रन जटित बस्त्राभूषण भी उसे दिये, जिन्हें देख सेठानी घबरा गयो कि निश्चय हो उन्हें उसके पति ने राजाके यहाँसे चुराकर उसे दिये होंगे। इसी धीच सेंट भो बिदेशसे लोट आये और सेशानीसे सब वृत्तान्त सुनकर राजाको खबर दी। राजानं चिन्ता व्यक्त को, और सेठको अपनी पुत्रोसे चोरका पता प्राप्त करने का आग्रह किया। पुत्रीने कहा मैं तो उन्हें केवल परणके स्पर्शसे पहचान सकती हैं। अन्य कोई परिचय नहीं है। इसपर राहाने एक भोनका आयोजन कराया, जिसमें सुगन्धाको आँखें बांधकर अभ्यागतोंके पैर घुलाने का कार्य सौंपा गया। इस उपाय से राजा ही पकड़ा गया । तब राजाने उस कन्यासे विवाह करनेका अपना समस्त वृत्तान्त कह सुनाया, जिससे समस्त वातावरण अानन्दसे भर गया । इस प्रकार मुनिके प्रति दुर्भावके कारण जो राती दुखो दरिद्री दुर्गन्धा हुई थी, वही सुगन्धदशमी व्रतके पुण्य से पूर्वोक्त पापको धोकर पुनः रानी बन गयी । ५. फ्रेन्स और जर्मन कथाओंसे तुलना
इस कथा प्रसंगमें महा सिन्ट्रेला नामक अंगरेजीकी एक कहानीका स्मरण आ गया, जिसे मैंने