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________________ १० सुगंधदशमी कथा दिया कि वह उसकी उस दुर्गन्धा पुत्रोंसे विवाह करे। किन्तु विवाहके पश्चात् हो यह उसकी दुर्गन्धको न सह सकने के कारण भाग गया। दुर्गन्धाके दिन पुनः दुःखसे बीतने लगे । एक बार सुत्रता आर्थिक धनमित्र के घर आहारको आयो । दुर्गन्धाने भवितसे आहार दान दिया । नगर में मुनिसंघ आया । दुर्गन्धा भी मुनियोंकी वन्दना को गयी। मुनिने उसकी दुर्गन्धका कारण बतलाया कि पूर्वभव में वह गिरिनगर के सेठ गंगदत्तको सिन्धुमती नामक भार्या थी। एक बार सेठ-सेठानी दोनों राजाके साथ वन विहारको जा रहे थे कि समाधिगुप्त नामक मुनि आहार निमित्त आते दिखाई दिये । सेठने अपनी पत्नोको उन्हें आहार करानेके लिए वापस भेजा। सेठानीने क्रुद्ध हो मुनिराजको कड़वी तुम्बीका आहार कराया। उसकी वेदना से मुनिका स्वर्गवास हो गया । राजाको जब यह समाचार मिला तो उन्होंने उसे निरादरपूर्वक नगरसे निकाल दिया। उसे कुष्ठ व्याधि हो गयी, और वह सात दिनके भीतर मर गयी । वह नरकों में तथा कुत्तो, शूकरी, शृगालो, गधो आदि तोच योनियोंमें जन्म लेकर अन्ततः तु अब पूतिगन्धाके रूपमें उत्पन्न हुई है । अपने पूर्वभव का यह वृत्तान्त सुनकर पूतिगन्धाको बड़ी आत्मग्लानि हुई, और उसने मुनिराजसे पूछा कि उस पाप से उसे किस प्रकार मुक्ति मिले। मुनिराजने उसे रोहिणी व्रतका उपदेश दिया, जिसके अनुष्ठान से यह अंगदेशको चम्पानगरीके मघवा नामक राजाकी रोहिणी नामक राजकन्या हुई । मत्र वह यह जानती भी नहीं यो कि दुःख और शोक कैसा होता है । राजकन्या रोहिणी के पति अशोकका भो पूर्वभव मुनिराजने सुनाया । कनकपुरमें सोमभूति के पुत्र सोमशर्मा और सोमदत्त थे । पिताको मृत्युके पश्चात् सोमदत्त राजपुरोहित हुआ, जिसके कारण उसका ज्येष्ठ भ्राता सोमशर्मा उससे द्वेष करने लगा। उसके दुराचारको वार्ता से सोमदत्तको वैराग्य हो गया, और वह मुनि हो गया । अत्र सोमकर्मा राजपुरोहित हुआ। एक बार जब राजा सोमप्रभ विजय यात्रापर जा रहे थे तब उन्हें सम्मुख सोमदत मुनिके दर्शन हुए। इसे सोमशर्माने अपशकुन बताकर मुनिको मरवा डालने की सलाह दी | किन्तु राजाने अन्य ज्योतिषियोंसे यह जानकारी प्राप्त की कि मुनिका दर्शन अपशकुन नहीं किन्तु बड़ा शुभ शकुन माना गया है, जिससे कार्य में अवश्य सफलता प्राप्त होती है। हुआ भी ऐसा ही । तथापि सोमाने द्वेषवश गुप्त रूपसे मुनिका घात कर दिया। यह जानकर राजाने उसे दण्डित किया। सातवें दिन उसे ទ व्याधि हो गयी। दुःख से मरकर उसने अनेक बार नरकौमं तथा मत्स्य सिंह, सर्प, व्याघ्र आदि क्रूर पशुओं में जन्म लेकर अन्ततः सिंहपुर के राजा सिंहसेनका दुर्गन्धी शरीर युक्त पुत्र हुआ। एक बार मुनिराज से अपने पूर्वभवका यह वृत्तान्त सुनकर उसे धार्मिक रूचि उत्पन हो गयी, और रोहिणी व्रत के प्रभाव से वह उस मुनि हत्या के पाप से मुक्त होकर अशोक कुमार उत्पन्न हुआ । पुण्पास्त्र व कथाकोश ( ३६-३७ ) में भी यह कथानक आया है, और वह भी इसी कथाकोशपर आधारित प्रतीत होता है। कथाकोश के अन्तर्गत रोहिणी चरित्रके उपर्युक्त तीनों उपनों में मुनि धातके पासे कुष्ठ रोगकी उत्पत्ति, नरक -गति, नीच योनियों में परिभ्रमण, और अन्तत: धार्मिक आचरण द्वारा उस पापका परिमार्जन, सुगति और सुखोंकी प्राप्ति के उदाहरण उपस्थित किये गये हैं। उपर्युक्त समस्त कथानकोंके मिलानसे इस बात में सन्देह नहीं रहता कि प्रस्तुत सुगन्धदशमी कथाका सबसे निकटवर्ती आचार रोहिणी का पूर्व भववृत्तान्त ही है । प्रस्तुत सभो कथानकों में मुनिनिन्दा या विरादरके पापसे कुछत्र्याधि व दुर्गन्धित शरीरको उत्पत्ति के अतिरिक्त दूसरा प्रबल तत्व है, नोच योनियोंकी दीर्घ परम्परा । महाभारत के मत्स्यगन्धा सम्बन्धी आख्यान में वह परम्परा दूसरे जन्मसे आगे नहीं बढ़ी। किन्तु विष्णुपुराण (३,१८ ) में एक ऐसा आख्यान भी आया है, जिसमें नोच योनियों को एक लम्बी शृंखला दिखलायी गयी है। एक समय राजा शतधनु और उनकी रानी शैम्या गंगा में स्नान करके निकले हो ये कि उन्हें अपने सम्मुख एक डोके दर्शन हुए, जो राजाके
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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