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________________ सुगंधदशमी कथा चित्र-परिचय जिनसागर कृत सुगंधदशमी कथा की सचित्र प्रति नागपुर के सेनगण भाण्डार की है। इसका आकार १०१x६ इंच है । कागज पुष्ट व देशी पीले से रंग का है । प्रत्येक पृष्ठ पर मराठी पद्य हैं और चित्र। ग्रंथ के कुल ४६ पृष्ठों में से केवल एक पृष्ठ १६ वां ऐसा है जिस पर चित्र नहीं है। अन्य सभी पृष्ठों पर एक या दो चित्र हैं, जिनकी कुल संख्या ६७ है । समस्त पृष्ठों का अनुमानतः चतुर्थांश लेखन और तीन चतुर्थांश चित्रों से परिपूर्ण है । ग्रंथ में उसके रचनाकाल अथवा लेखनकाल का कोई उल्लेख नहीं है। किन्तु जिनसागर की अन्य जो रचनायें उपलभ्य हैं उनमें शक संवत् १६४६ से १६६६ तक के उल्लेख पाये गये हैं। कर्ता ने अपने गुरु देवेन्द्रकीर्ति का भी उल्लेख किया है जो निश्चयतः कारंजा के मूलसंघ बालात्कार गण की भट्टारक गद्दी पर शक संवत् १६२१ से १६५१ तक विराजमान थे । चूंकि जिनसागर ने अपनी यह रचना उन्हें ही समर्पित की थी और उस समर्पण का चित्रण भी ग्रंथ के अन्त में पाया जाता है, अतः सिद्ध है कि यह रचना शक १६५१ से पूर्व ममाप्त हो चुकी थी। आश्चर्य नहीं जो प्रस्तुत हस्त-लिखित प्रति स्वयं उसके कर्ता जिनसागर के हाथ की ही हो, और चित्र भी उन्हीं के बनाये हुए हों। चित्रों को शंलो भी शक संवत् की १७हवीं शती की है । चित्रों के रंग चटकीले हैं । पुरुषों और स्त्रियों की प्राकृतियों के अंकन में सावधानी बरती गई है । यद्यपि रेखांकन स्थूल है, तथापि भावों के प्रदर्शन में चित्रकार को पर्याप्त सफलता मिली है । पुरुषों की पगड़ियां छज्जेदार और लम्बे चोगे पैरों के टहनों तक लटकते हुए हैं । ये ईसवी की १८ वीं शती के प्रारंभ की चित्र-शैली के लक्षण हैं। अन्य सभी बातों में भी चित्र उक्त काल की दक्षिण भारतीय मराठा शैली के हैं । उक्त संपूर्ण पुस्तक उसके लेख व चित्रों सहित यहाँ छाया चित्रों में भी प्रस्तुत की जा रही है । हमारी इच्छा थी कि ये सभी चित्र उसके मौलिक रंगीन रूप में ही छापे जाय । किन्तु रंगीन ब्लाकों के निर्माण ब छपाई के अत्यधिक खर्च को देखते हुए यह निश्चय किया गया कि केवल चार चित्र रंगीन रम्ने जाय जो चित्रों में रंगों के प्रयोग को सूचित करने के लिये पर्याप्त होंगे। इसी कारण प्रस्तुत चित्र-परिचय में रंगों की सूचना पर विशेष ध्यान दिया गया है। चित्रों को अन्य विशेषताएँ उनके साक्षात् दर्शन से अवगत हो ही जावेगी।
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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