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सुगन्धदशमीकथा
जब पति आये मो ढिग यहाँ । तब उन पद धोवत थी तहाँ ।। ११७॥ घोवत चरण पिछानूँ सही । और उपाय इहाँ अब नहीं || सेठ कही भूपति सों जाय । कन्या तौ इस भाँति चताय ॥ ११८ ॥ | ऐसे सुणि तब बोल्यो भूप । इह तौ विधि तुम जाणि अनृप || तस्कर ठीक करके काजे । तुम घर आयेंगे हम आज ।। ११९|| सेठ तबै प्रसन्न अति भयो । जाय तयारी करतो थयो ||
राजा सय परिवार मिलाय । तचहीं सेठ तणें घर जाय || १२० ||
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प्रजा ज सकल इकट्टी भई । तिलकमती बुलवाय सु लई ॥ नेत्र मूदि पड़ घोवत जाय । यह भी नहीं नहीं पति आय || १२१|| जब नृपके चरणांबुज धोय | कहती भई यही पति होय || राजा हँसि इम कहतो भयो । इनि हमको तस्कर कर दयो ।। १२२|| तिलकमती फुनि ऐसे कही। नृप हो वा अनि होऊ सही ॥ लोक हँसन लागे जिहिं बार । भूप मने कीन्हें ततकार ||१२३|| वृथा हास्य लोका मति करो। मैं ही पति निश्चय मन घरो || लोक कहैं कैसे इह् बणी | आदि अंतर्लो भूपति भणी ||१२४|| तचड़ी लोक सकल इम कह्यो । कन्या धन्य भूप पति लो ॥ पूर इन व्रत कन्यो सार । ताको फल इह फल्यो अपार || १२५|| भोजन नन्तर करि उत्साह | सेठ कियो सब देखत ब्याह || ताकूँ पटराणी नृप करी भूपति मनमें साता घरी || १२६ ॥ एक समैं पति-युत सो नारि । गई सू जिनके गेह मँझारि ॥ वीतराग मुख देख्यो सार । पुण्य उपायो सुख दातार ॥१२७॥ सभा चिर्षे श्रुतसागर मुनी । बैठे ज्ञाननिधी बहु गुनी । तिनको प्रणमि परम सुख पाय । पूलै मुनिवर सों इम राय ॥ १२८ ॥ पूर्व भव मेरी पटनार । कहा सुव्रत कोन्ह्यो विधि धार ॥ जाकर रूपवती दह योगी पूरव सब अरु सुगंध दशमी व्रत सार । सो इनि कीन्ह्यो सुख दातार || १३०|| ताको फल इह जाणूं सही। ऐसे मुनि श्रुतसागर कहीं ||
मई | अधिक संपदा शुभ करि लई ||१२९ || विरतंत मुनि निंदादिक सर्व कहंत ||
तब ही आयो एक विमान | जिन श्रुत गुरु बंदे तजि मान ।। १३१ || सुनि कूँ नमस्कार करि सार । फेर तहाँ नृप - देवि निहार ॥ तिलकमतीके पाचोँ परयो । अरु ऐसे सुवचन उच्चरयो ॥ १३२॥ दोहा -- स्वामिनि तो परसाद मैं मैं पायो फल सार । व्रत सुगन्ध दशमी कियो पूरव विद्या धार ॥ १३३ ॥ ततके परभाव तैं देव भयो मैं जाय । तुम मेरी साधर्मिणी जुग क्रम देखनि आय || १३४ ॥
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