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________________ [८३. ८६] सुगन्धदशमीकथा भूपति मेरे तात . रतन सु दीपि पठाय। मोक्र् मम माता इहाँ थापि गई अब आय ॥८३।। चौपई–माखि गई इनि थानक कोय । आवेगो तो भरता सोय ।। याते तुम आये अब धीर । मैं नारी तुम नाथ गहीर ।।८।। युणि राजा तव व्याह सु करयो । समिरखो तैठे सुख धरयो ।। राजा प्रात समै अवलोय । निज मन्दिर . जावनि होय ॥८५|| तिलकमती ऐसे तब कही । अब तो तुम मेरे पति सही ॥ सर्प जेम डसि जाओ कहाँ । सुणि इम भाषे भूपति तहाँ ॥८६|| निशिकी निशि आस्यूँ तुझ पासि । तूं तो महा शर्मकी रासि || तिलकमती पूछे सिर नाय । कहा नाम तुम मोहि बताय || ८७)। राजा गोप कह्यो निज नाम । हम सुणि तिय पायो सुख धाम || यूँ कहि अपने थानक गयो । तब तेही परभात सु भयो ।।८८|| बंधुमती कहि कपट विचार । तिलकमती है अति दुखकार ।।। ब्याह समै उठिगी किनि थान | जन जन सों पूछे दुख मान ॥८९।। दोहा-देखो ऐसी पापिनी गई कहाँ दुख दाय। ढूँढत ढूँढत कन्यका लखी मसाणां जाय ॥९०|| जाय कहै दुःखदा सुता इनि थानकि किमि आय | भूत प्रेत लाग्यो कहा ऐसी विधि बतराय ॥९१।। चौपई-तिलकमती भाषै उमगाय । तैं भाप्यो सो कीन्हो माय ॥ बंधुमती कहि तुंग पुकार । देखो एह असत्य उचार ||९२।। जाण कहाँ क इह आय । व्याह समै दुःखदाय अघाय || तेजोमती विवाहित करी । साहाकी समया नहिं टरी ।।९३।। खिजि भाषी उटि चल घर अवै । ले आई अपने थल तवे ।। तिलकमती तूं पूछ मात । तें कैसो वर पायो रात ।।९४॥ मुता कहो बरियो हम गोप । रैनि परणि परभात अलोप ।। बंधुमती भावी ततकाल | री तैं पर पायो गोपाल ॥१५॥ दोहा---घर इक गेह समीप थो सो दीन्हू दुःख पाय । दिन प्रति रजनीके विषै आवै तहाँ सु राय ॥९६।। दीप निमित नहिं तेल दे तबहि अँधेरे माहिं । राजा तैठे ही रहै सुख पावे अधिकाहिं ॥९॥ चौपई-केते इक दिन ऐसे गये। बंधुमती तब यूं वच दये ।। तूं ग्वाल्या ते कहि इम जाय । दोय बुहारी तो दे लाय ॥९८॥ तिलकमती आरे करि लई । राति भये निज पति पै गई ।। करि क्रीडा सुख वचन उचार | नाथ सुयूँ अर दास तिसार ॥२९॥
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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