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________________ ५४] सुगन्ध दशमीकथा करें। ताड़ी के जिन गुण अवतरे ॥ उद्यापन राय । सुणहु सुविधि तुम मन वच काय ॥४९॥ I चौपई दश संवत्सर लों जो करें बहुरि महशांतिक अभिषेक करेय । जिन आगे बहु पुहुप घरेय ॥ इह उपकरण धरै जिन थान | ताको भेद सुनहु चित आन ||५०|| दश चरणोंको चंदवो लाय । सो जिन-बिंब उपरि तनवाय ॥ और पताका दश ध्वज सार । बाजे घण्टा नाद अपार ॥११॥ मुकतमाल की शोभा करै । चामर युगल अनुपम धेरै || और सुणहु आगे मन लाय । प्रभुकी भक्ति किये सुख थाय ॥ ५२ ॥ धूप दहन दश आरति आन । सिंहपीठ आदिक पहिचान || इत्यादिक उपकरण मँगाय | भक्ति भाव जुत भव्य चढ़ाय ॥ ५३ ॥ दान अहार आदि च देय । ता करि भवि अधिक फल लेय ॥ आर्यको अंबर दीजिए | कुंडी श्रुतनिजरे कीजिए ॥ ५४ ॥ यथायोग्य मुनिको दे दान । इत्यादिक उद्यापन जान ! जोन इती है शक्ति लगार । थोरो ही कीजे हित धार ॥५५॥ जो न सर्वथा घरमें होय तो दूनो कीजे व्रत सोय ॥ पणि व्रत तो करिये मन लाय | जो सुर मोक्ष सुथानक दाय ॥ ५६ ॥ 1 -w दोहा - शाक - पिंड दान तैं रत्न-वृष्टि है राय । हाँ द्रव्य लागो कहा भावनि को अधिकाय || ५७|| ता ते भक्ति उपाय के स्वातम हित मन लाय | व्रत कीजे जिनवर को इम सुणि कर तब राय ||१८|| चौपाई – द्विज कन्या को भूप बुलाय | व्रत सुगंध दशमी बतलाय || राय -सहाय थकी व्रत करयो । पूरब पाप-बंध तब हरयो ॥५९॥ उद्यापन करि मन वच काय । और सुनहु आगे मन लाय ॥ एक कनकपुर जाणं सार । नाम कनकप्रभ तसु भूपार ॥ ६० ॥ नारि कनकमाला अभिराम । राज- सेठ इक जिनदत नाम । ताकै जिनदत्ता वर नार। तिहिं ताकै लीन्हू अवतार ॥ ६१ ॥ तिलकमती नामा गुणभरी । रूप सुगंध महा सुन्दरी । कछुक पाप उदय फुनि आय । प्राण तजे ताकी तब माय ॥ ६२ ॥ जननी बिन दुख पावैं बाल और सुणों श्रेणिक भूपाल | जिनदत जोवनमय थो जबै । अपनो ब्याह विचारयो तबै ॥ ६३ ॥ इक गोधनपुर नगर सुजान | वृषभदत्त वाणिज तिहि थान । ताकै एक खुता शुभ भई । बंधुमती तसु संज्ञा दई || ६४ || तासों कीन्हों सेठ विवाह । बाजा बाजे अधिक उछाह । परणि खु घर छायो सुखसार । आगे और सुणो विस्तार ||६५ || [ ४
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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