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दुर्गतिभाजनम् ||१७|| असत्यं नरकद्वारं सय आपत्तिकारकम् । मानभङ्गो भयः शोको जायतेऽसत्यवाक्यवः || १८ || सत्यं भयदं त्यक्त्वा चर सत्यं महाश्रतम् । सत्ये चैके स्थिताः सर्वे योगिनो व्रतपालकाः ||१६|| तस्मात्सर्वप्रयत्नेनासत्यं त्यज सुभावतः । सत्यवाक्यं वदात्मन् त्वं सुखदं दुःखहारकम् ||२०|| सत्यं महान्तं भक्त्या जिनेन्द्रैरिह धारितम् । मुनिभिर्योगिनाथैव धारितं शिवसिद्धये ||२१|| तस्माद्धारय हे आत्मन् सत्यमेव महाब्रतम् । महाव्रतप्रभावेन सुधर्मं लभते शिवम ||२२|| स्तेयं पापं महानिन्धं जीवानां दुःखदायकम् । स्थानं बंधयधादोनां विपत्तीनां गृहं मतम् ||२३|| नास्ति स्तेयसमं पापं परपीडाकरं नृणाम्। एकेन स्तेयपापेन जितं पापकदम्बकम् ||२४|| चौरस्य हि दया नास्ति आत्मघाताच नो भयम् । कृत्याकृत्यविवेको न न शल्यरहितं मनः ||२४|| धनमेव हि जीवानां प्राणाः सन्ति सुजीवने । उद्घृते च धृतास्तेन प्राणा:
आत्मन् ! तू इन असत्य वचनोंको वास्तव में प्रत्यक्ष दुःख देनेवाले पाप समझ ये असत्य वचन क्लेश, TE और बंधन आदि स्थान हैं और दुर्गतिकै पात्र हैं ||१७|| यह असत्यरूप पाप नरकका द्वार है, शीघ्र ही अनेक आपत्तियों को लानेवाला है, तथा इसी असत्यके प्रतापसे मानभंग होता है, भय उत्पन्न होता है, और शोक प्रगट होता है ||१८|| इसलिये हे आत्मन् ! भय देनेवाले इस असत्यका सर्वथा त्याग कर और सत्य महाव्रतको धारण कर । व्रतको पालन करनेवाले समस्त योगी इस एक सत्य व्रतमें ही स्थिर रहते हैं ॥ १९ ॥ इसलिये हे आत्मन् ! तू अपने श्रेष्ठ परिणामोंसे और सतरहके प्रयत्नोंसे इस असत्यका त्याग कर और सुख देनेवाले तथा दुःखों को दूर करनेवाले सत्यवाक्यों को ही सदा भाषण कर ||२०|| इस सत्य महाव्रतको भगवान् जिनेन्द्रदेवने मी धारण किया है और मोक्ष प्राप्त करनेके लिये अनेक योगियों के स्वामियोंने और मुनिराजने धारण किया है ||२१|| इसलिये हे आत्मन् ! जिस सत्य महाव्रतके प्रभावसे सब तरहका कल्याण करनेवाला श्रेष्ठ धर्म प्राप्त होता है, उस सत्यमहाव्रतको तू अवश्य धारण कर ||२२|| इसीप्रकार चोरीरूप पान मी महानिन्दनीय है, जीवोंको दुःख देनेवाला है, बंध-बंधनका स्थान है और अनेक विपत्तियोंका घर है ||२३|| इस चोरीके समान मनुष्यको पीड़ा उत्पन्न करनेवाला अन्य कोई पाप नहीं है । एक चोरी पापसे ही अन्य समस्त पाप हार गये हैं ||२४|| चोरके हृदयमें कभी दया नहीं होती, आत्मघात करनेसे कभी उसको भय नहीं लगता, कृत्य और अकृत्यका कमी उसको विवेक नहीं होता और उसका मन कमी शल्परहित नहीं होता
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