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अष्टमोऽधिकारः।
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सरयालयं जगत्पूज्यं सत्यधर्मस्य नायकम् । भावभक्त्या प्रवन्देऽहं श्रीसुपाय जिनेश्वरम् ।। सत्ये प्रतिष्ठितो देवः सत्ये धर्मः प्रतिष्ठितः । सस्ये प्रतिष्ठिता विद्या सत्यमेव सुखाकरम् ॥२॥ सस्पातरन्ति संसार सत्यावं प्रणश्यति । सत्याच्च बन्धुतां यान्ति सर्वे जीयाः परस्परम ॥३।। सत्यमेव जगन्मान्य विश्वकल्याणकारकम् । जयध्वनि प्रकुर्वन्ति देवाः सत्येन भूतले | सत्येन धायते धर्मस्तत्वधर्मप्रदर्शकः । सत्येन शिषसौख्यं हि जायते प्रविनश्वरम् ॥शा सत्येन निर्मलो भावः स्वात्मनो जायते शुभः । कृत्स्नकर्मज्ञयस्तेन जायते चिरेण सः ॥३॥ तेषु वा चरित्रेषु सत्योऽस्ति सर्वसाधकः । जलस्थानं हि धर्मेषु सत्यस्य गदितं जिनैः ।।७। त्यक्त्वा सर्वविकल्पं हि त्वं सत्ये रसिको भव ।
जो श्रीसुपार्यनाथ भगवान् मन्यके स्थान हैं, जगत्पूज्य हैं, सत्यधर्मके स्वामी हैं और जिनराज हैं; ऐसे all भगवान् सुपार्श्वनाथको में भक्ति और भावपूर्वक नमस्कार करता हूँ ॥१॥ इस सत्य महाव्रतमें देव मी प्रति-5
ष्ठित हैं, इसी सन्यमें धर्म प्रतिष्ठिन है, नत्यमें ही विद्या प्रतिष्ठित है और सरय ही सुखकी खानि है ॥२॥ il इस सत्यसे ही यह जीव संसारसे पार हो जाता है, सत्यसे ही नमस्त दुःख नष्ट हो जाते हैं और सत्यसे ही | | समस्त जीव परस्पर बन्धुताको प्राप्त होते हैं ।।३। यह सत्यधर्म संपारभरमें मान्य है और समस्त संसारका | कल्याण करनेवाला है। इस पृथ्वीतलपर इस सत्य के ही प्रतापसे देवलोग जय जयकार करते रहते हैं ॥४॥ तत्वोंके धर्मको प्रकाशित करनेवाला वस्तु स्वभावरूप धर्म इस सत्यसे ही धारण किया जाता है । और सत्यधर्मके 5 ही प्रभावसे कभी नाश नहीं होनेवाला मोक्षसुख प्राप्त होता है |५|| इस सत्यसे ही आत्माके निर्मल और शुभ भाव उत्पन्न होते हैं और इसी सत्यसे शीघ्र ही समस्त कर्माका नाश हो जाता है ॥६॥ व्रत और चारित्रमें सत्य | ही सबका साधक है और भगवान् जिनेन्द्रदेव समस्त धर्मोंमें सत्य धर्मको ही उच्च स्थान देते हैं ॥७॥ इसलिये
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