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सु०प्र०
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स्पादिका मता। अतो हिंसैघ संसारो जन्ममृत्युभयाकुलः ॥४५॥ हिंसक माणसंहारो व्याधिभर्मप्रभेदिका । अनेकदुःखदा । चैव मानमर्दनकारिका !॥४६॥ हिंसवाखिलपुण्यानां धनधान्यादिसंपदाम् । नाशिका दुःखशोकानां दायिका भववर्द्धिका ॥४७॥ स धर्मो यत्र नो हिसा तत्पुण्यं यत्र नो वधः। सत्यं तद्यत्र नो हिंसा तीर्थं हिंसाविहीनकम् ।।४।। हिंसा न वर्णिता यत्र वेदः स एव कथ्यते । शास्त्रं तदेव सत्यं स्याद्धिसावर्णनवर्जितम् ||४|| सृष्टो संहारको योन्ति पशुयज्ञविधायकः 1 हिंसोपदेशको नूनं देवः स स्यात्कदापि न ॥५०॥ हिंसाकर्मकरः सर्वारम्भपापविधायकः । हिंसायां मन्यमानो यो धर्मो सोस्ति गर्न ॥११ - गोयामा हिंसा रिसा केशविघातिका । श्रेयोमार्गप्रपित्सूनां त्याज्या हिंसात्र दु:खदा ॥५२॥1 मंगलं परमं तद्धि यत्र हिंसा न वर्तते। सर्वमङ्गलकार्याणां हिसा विध्वंसिका मता ॥५३॥ देव पूजा हिसैवास्ति धर्मयज्ञः सः बन्धको उत्पन्न करनेवाली यह हिंसा ही है, इसलिये कहना चाहिये कि यह हिंसा ही जन्म, मरण और भयसे | भरा हुआ यह संमार है ॥४५॥ यह हिंसा ही प्राणोंका संहार है. हिंमा ही व्याधि है, हिंसा ही मर्मको भेदन करनेवाली है, हिंसा ही अनेक दुःख देनेवाली है और हिंसा ही मानमर्दन करनेवाली है ॥४६॥ यह है हिसा ही समस्त पुण्योंका नाश करनेवाली है, समस्त धन धान्य आदि संपदाओंका नाश करनेवाली है, अनेक दुःख और शोकोंको देनेवाली है और यह हिंसा ही संसारको बढानेवाली है ॥४७॥ धर्म वही है जहां हिंसा न होती हो, पुण्य वही है जहां किसी प्राणीका बध न होता हो. सत्य वही है जहां हिंसाका लेश भी न हो |
और तीर्थ वही है जो हिंसासे सर्वथा रहित हो ॥४८॥ वेद उसीको कहते हैं जिसमें हिंसाका वर्णन न हो और 1 यथार्थ शास्त्र वे ही कहलाते हैं जिनमें हिंसाका वर्णन सर्वथा न हो ॥४९|| जो सृष्टिका संहार करता है, यज्ञमें | पशुओंके होमने का विधान बतलाता है और जो हिंसाका उपदेश देता है वह इस संसारमें देव कभी नहीं कहला सकता | ॥५०॥ जो हिंमारूप कायाँको करता है. मयतरहके आरंभ और पापोंको करता है तथा जो हिंसामें ही धर्म मानता है, उसको गुरू कमी नहीं कह सकते ॥५१॥ इस संसारमें कल्याण वहीं है जहां हिंसा न हो, क्योंकि यह हिंसा | ही कल्याणको नाश करनेवाली है । इसलिये कल्याणमार्गको चाहनेवाले भव्य पुरुषोंको दुःख देनेवाली यह हिंसा सर्वथा छोड़ देनी चाहिये ॥५२॥ इस संसारमें परम मांगलिक कार्य वे ही हैं जिनमें हिंसा न होती हो; क्योंकि यह हिंसा ही मांगलिक समस्त कार्योंको नाश करनेवाली है ॥५३|| इस संसारमें देवपूजा