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सु०प्र०
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| द्वीन्द्रियत्वमिहात्मना । तथापि त्रिःचतुःपंचाक्षत्वमत्यन्तदुर्लभम् ॥ll काकतालीयन्यायेन यदि लब्धा नृजन्मता । सुसें सत्कुले जन्म सजातित्वं च दुर्लभम् ॥५॥ तत्रापि पूर्णमायुष्यं नीरोगत्वं सुदुर्लभम् । महापुण्याद्धनादीनां प्राप्तिश्चात्यन्तदुर्लभा ॥८६॥ एतत्सर्व सुलब्ध्वापि यदि न स्यात्सुदर्शनम् । व्यर्थ स्यादिह नत्सर्वमन्धस्यादर्शदर्शनम् ॥णा | अनन्तकालतो जीवो बम्भ्रमीत भवार्णवे। सम्यक्त्वेन विनैकेन दुःखं सहति दारुणम् ।। जिनधोस्ति चात्यन्त दुर्लभः पृथिवीतले । सोनन्तकालतोयात्मन् त्वया लब्धः कदापि न II भावेन श्रद्धया वापि जिनधर्मस्य सेवनम् । अत्यन्तदुर्लभ लोके शर्मदं भवनाशनम् ॥1॥ सुहम्झामव्रतादीनां प्राप्तिश्चात्यंतदुर्लभा । बोधि विना समाधिन वां विनाम शिधः कचित् शा सुदर्शनं सुचारित्रं सम्यक्षा सपः श्रियम | श्रधामन प्रत्येमि गोमि पहयाभ्यहम् ॥६॥ पर्यायका प्राप्त होना उत्तरोत्तर दुर्लभ है ॥८४|कदाचित् काकतालीय न्यायसे इस जीवको मनुष्यजन्मकी प्राप्ति हो जाय तो भी आर्यक्षेत्र, श्रेष्ठकुल और सजातिका प्राप्त होना अत्यन्त दुर्लभ है ।।८५॥ कदाचित् | इन सब साधनोंका भी संयोग मिल जाय तो मी पूर्ण आयुका प्राप्त होना और नीरोग शरीरका मिलना अत्यन्त | दुर्लभ है । तया महापुण्यके उदयसे प्राप्त होनेवाली धनादिककी प्राप्तिको अत्यन्त दुर्लभ समझना चाहिये ॥८६॥ यदि इन सबकी प्राप्ति हो जाय और सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति न हो तो जिसप्रकार अन्धे पुरुषको दर्पणका दिखाना व्यर्थ है, उसीप्रकार उस जीवको प्राप्त हुई सब सामग्रियां व्यर्थ हैं ॥८७॥ यह जीव इस संसाररूपी समुद्र में बिना | एक सम्यग्दर्शनके अनंत कालसे परिभ्रमण कर रहा है और अनेक प्रकारके दारुण दुःख सहन कर ।।८८1 इस पृथ्वीतलपर यह जैनधर्म अत्यन्त दुर्लभ है । हे आत्मन् ! तूने यह जैनधर्म अनन्तकालसे मी कमी प्राप्त नहीं किया है ॥८९।। अपने निर्मल परिणामोंसे श्रद्धापूर्वक जिनधर्मका सेवन करना अत्यन्त दुर्लभ | है। यह जिनधर्मका सेवन करना संसारका नाश करनेवाला है और मोक्षरूप सुखको देनेवाला है ॥२०॥ इस जीवको सम्बग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रयकी प्राप्ति होना अत्यंत दुर्लभ है। तथा रत्नत्रयकी प्रापिके विना समाधि वा ध्यानकी प्राप्ति होना अत्यंत दुर्लभ है और ध्यानके विना मोक्षकी प्राप्ति | होना अत्यन्त कठिन है ॥९१।। अब में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप इन चारोंका | श्रद्धान करता हूँ, चारोंका विश्वास करता हूँ, चारोंकी स्पृहा करता हूं, चारोंको धारण करता हूँ, और शुद्ध