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सु० प्र०
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कर्मजेता विधाता । भवजननविमुक्तः मुक्तिरामानुरक्तः रमयति हि सुधर्मे स्वात्मरूपे विशुद्ध ||२५|| || इदि सुधर्मध्यानप्रदी पालङ्कारे परमात्मस्वरूपप्ररूपणो नाम चतुर्थोधिकारः ||
दूर करनेवाला, समस्त कर्मोंको जीतनेवाला, सबका स्वामी, जन्ममरणसे रहित और मुक्तिरूपी रमणीमें अनुरक्त रहता है; ऐसा परमात्मा स्वात्मरूप विशुद्ध आत्मधर्म में सदा क्रीडा किया करता है ॥२५॥
इसप्रकार सुनिराज श्रीसुधर्मसागरविरचित सुधर्मध्यान प्रदीपाधिका में परमात्माके स्त्ररूपको निरूपण करनेवाला यह चौथा अधिकार समाप्त हुआ ||
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