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सु०प्र० ॥३६॥
पादकः ॥१॥ जीवन्मुक्तः सहस्थो लोकालोकप्रकाशकः । सफलः परमात्मासौ जिनेन्द्रो जिननायक: Ill कृत्स्नकर्म
। देहातीतो निरञ्जनः। निरीकारोपि सिद्धात्मा प्रदेशाकारसंस्थितः 11१९: विलोकनायको नित्योऽविनाशी सर्व दर्शकः । निरन्वयो निराबाधो वावगाहनशक्तिकः ॥२०॥ परमोत्कृष्टवीर्यः स निष्क्रियः शुद्धचेतनः । जन्मातीतो जरामृत्यु. रूपंदोषर्जियः ।।५।। काल कल्रशतेनापि विकारपरिवर्जितः । अत एव हि कूटस्थः व्ययोत्पत्ति वात्मकः ॥२२॥ चिदानन्दमयः शुद्धः व्यापको ज्ञानतो विभुः । सम्यन्वादिगुणोपेतः सूक्ष्मोऽमूतों गुणाकरः ॥२३|| निष्कलः परमात्मासौ शाश्वतः सु स्वसंयुत' । त्रिलोकशिवरामीनो देवदेव-मस्कृतः ॥२४॥ परमसमयसारस शुद्धचैतन्यरूपासकलकलुपाइंता
वीतराग आदि नामोंसे कहे जाते हैं ॥१६।। वह परमात्मा पञ्च कल्याणोंके द्वारा स्तुति करने योग्य होता है, | i/ पञ्च आश्चर्योको उत्पन्न करनेवाला होता है, तीनों लोकों में उसकी महिमा व्याप्त होती है और उनके चरण-13
कमल तीनों लोकोंमें पूजे जाते हैं ।।१७।। यह परमात्मा जीवन्मुक्त होता है, परमौदारिक शरीरमें विराजमान | रहता है और लोक अलोकको प्रकाशित करनेवाला होता है, इसमकारके जिन नायक जिनेन्द्रदेव भगवान् अर्हन्त
देवको सकल परमात्मा कहते हैं ॥१८|आगे निकल परमात्माका स्वरूप कहते हैं--जो समस्त | कर्मोंसे रहित हैं, शरीरसे रहित हैं, निरंजन हैं, निराकार हैं, प्रदेशोंके आकाररूप विराजमान हैं ऐसे सिद्ध
परमात्मा निकल परमात्मा कहे जाते हैं ॥१९॥ वे सिद्ध परमात्मा तीनों लोकोंके जानकार, नित्य, मा अचिनश्वर, सर्वदर्शी, अविनाशी. निरावाध और अवगाहन शक्तिको धारण करनेवाला होता है |२०|| वह *
निकल परमात्मा परमोत्कृष्ट अनन्तवीर्यको धारण करनेवाला, क्रियारहित, शुद्ध चैतन्यस्वरूप, जन्मरहित | बुढ़ाया--मरण आदि सब दोषोंसे रहिन होना है ।।२१। उन परमात्मामें सैकड़ों कल्प काल बीत जानेपर Pall भी कमी किसी प्रकारका विकार नहीं होता; इसीलिये कूटस्थ और उत्पाद-व्यय-धोव्यस्वरूप कहलाता
है ॥२२॥ वह निकल परमात्मा चिदानन्दमय, शुद्ध ज्ञान दर्शनके द्वारा व्यापक, विभु, सम्यक्त्व आदि | आठ गुणोंसे सुशोभित, भूक्ष्म अमूर्न और अनन्त गुणोंकी खानि होता है ॥२३॥ जिनको देवोंके देव मी नमस्कार करते हैं, जो तीनों लोकों के शिवरपर विराजमान हैं, नित्य और अनन्त सुखी हैं, ऐसे सिद्धपरमेष्ठी | निकल परमात्मा कहलाते हैं ॥२४॥ जो परमात्मा परम समयरूप है, शुद्ध चैतन्यस्वरूप है, समस्त पापोंको 81
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