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सु० प्र०
॥३५॥
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सर्वदोषविनिर्मुक्तो मुक्तः संसारकूपतः ॥ ७॥ अनन्तसुखसम्पन्न धनन्तवीर्यधारकः । श्रनन्तज्ञानसंयुक्तो योऽनन्तदर्शनोदयः ||६|| शुद्धात्मनि स्थितः सोयं ध्यानप्रपंचदूरगः । विरागो त्रिमलो नित्यः चान्तो दान्तो जितेन्द्रियः ॥ ६॥ अन्तादिमध्यहोनो यः कृतकृत्योतिनिर्मलः । शुद्ध बुद्धो विशुद्धात्मा तीर्थकृच्छासको विभुः ॥ १० ॥ विष्णुर्ब्रह्मा परब्रह्म परमेष्ठी सनातनः । स शंकरश्चिदानन्दो ब्रह्मानन्दो महेश्वरः || ११|| शान्तात्मा परमात्मा च महात्मा विश्ववन्दितः । सत्यात्मा तत्त्वरूपात्मा शुद्धात्मा ? विपावनः || १२|| परमर्षिमहर्षिः ब्रह्मर्पिर्मुनिपुङ्गवः । हरिहरो विधातासौ योगोशो विश्वतारकः ||१३|| महाविभूतिसम्पन्नः समवसृतिधारकः । सिंहासनसमासीनः छत्रत्रयविराजितः || १४ || प्रातिहार्या कोपतश्चामरैः परिवीजितः । यक्षयची सुसंभाव्यो देवनागेन्द्रवन्दितः ||१५|| सुरासुरनरैः पूज्यः सर्वदेवाभिनायका । जिनोईदेवदेवसौ सर्वज्ञो वीतरागकः ||१६|| पंचकल्याणकैः स्तुत्यः पंचाश्चयसुकारकः । त्रिलोकमहिमाप्राप्तः त्रिलोके पूज्य. रहित होता है, समस्त दोषोंसे रहित होता है और संसाररूपी कूपके महादुःखोंसे रहित होता है ||७|| वह परमात्मा अनन्त ज्ञान अनन्त सुख अनन्त वीर्य और अनन्त दर्शनको धारण करनेवाला होता है ||८|| ध्यानके से अलग हुआ वह परमात्मा अपने शुद्ध आत्मामें स्थिर रहता है, तथा रागरहित, मलरहित, नित्य, क्षमाशील, जिवेन्द्रिय और नहासंघभी होता है || ९ || वह परमात्मा आदि मध्य अन्तसे रहित होता है, कृत्यकृत्य, अत्यन्त निर्मल, शुद्ध, बुद्ध, शुद्धआत्ममय तीर्थंकर, शासक और विभु होता है ||१०|| वह परमात्मा विष्णु, ब्रह्मा, परब्रह्म, परमेष्ठी, सनातन, शङ्कर, चिदानन्द, ब्रह्मानन्द, महेश्वर, शांतात्मा परमात्मा, महात्मा, सत्यात्मा तस्वरूपात्मा, शुद्धात्मा अत्यन्त पवित्र और संसार के द्वारा बन्दनीय कहा जाता है ||११-१२ | यह परमात्मा परमऋषि, महाऋषि, ब्रह्मऋषि, मुनियोंमें श्रेष्ठ, हरि, हर, विधाता, योगीश्वर, और संसारको पार कर देनेवाला कहा जाता है || १३|| वह परमात्मा महाविभूतियोंसे सुशोभित होता है, समवसरण में विराजमान रहता है, और तीन क्षत्रोंको धारण करता हुआ सिंहासनपर विराजमान रहता है || १४ || वह परमात्मा आठों प्रातिहायोंसे सुशोभित रहता है, उनपर चमर डुलते रहते हैं, यक्ष यक्षी उनकी सेवा करते रहते हैं और देव नागेन्द्र आदि सब उनकी बंदना करते रहते हैं ||१५|| सुर असुर चक्रवर्ती आदि सब उनकी पूजा करते हैं वे सब देवेंकि स्वामी होते हैं तथा जिन अन् देवाधिदेव सर्वज्ञ और