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सु० प्र०
मा०
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चतुर्थोऽधिकारः॥
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येन ध्यानाचतुष्कर्म दग्र्ध शुद्धान्तरात्मना । प्राप्तं परमकैवल्यं तं वन्दे शम्भत्रं जिनम् ॥१॥ सर्वपापादिभिः | all मुक्तो मुक्तो मोहकदम्बकात् । सर्वद्वन्द्वादिनिर्मुक्तो मुक्तोन्तोषाह्यसंगतः ॥२॥ मुक्तः कामविकारैश्च मुक्तो हि विषयादिभिः । | मुक्तो मनोक्षचेष्टाभिर्मुक्तः क्षुधादिदोषकैः ॥२॥ मुक्तः क्रोधाभिमानायैः रागद्वेषप्रपंचकैः । मुक्तो जन्मजरामृत्युरत्यरत्यादि.
दुर्गुणैः ॥४॥ निद्रातन्द्राभयालस्यैर्मुक्तरतृष्णादिपापकैः । पापपुण्यैर्विनिर्मुक्त: मुक्तः कर्मचतुष्टयान् ॥शा मुक्तोष्टादशभिII दोर्षस्तैः संसारस्वरूपकैः । मुक्तो यः सर्वथा वस्त्रैरलंकारैर्बधूजनैः ॥६।। स्वेदनीहारनिर्मुक्तो मुक्त श्रातदुःखनः ।
__शुद्धअन्तरात्माको धारण करनेवाले जिन जीवोंने अपने ध्यानसे चारों धातिया कोको नाम कर परम केवल ज्ञान प्राप्त किया है ऐसे भगवान्। संभवनाथको मैं यन्दना करता हूँ ॥१॥ आगे परमात्माका स्वरूप कहते हैं-परमात्मा समस्त पापोंसे रहित होता है, मोहके समस्त विकारोंसे रहित होता है, समस्त उपद्रवोंसे तथा अन्तरंग बहिरंग समस्त परिग्रहों से रहित होता है ।।२।। वह परमात्मा कामके विकारोंसे रहित होता है, विपयादिकोंसे रहित होता है, मन ओर इन्द्रियोंझी चेष्टाओंसे रहित होता है और भूख प्यास आदि all समस्त दोपोंसे रहित होता है ॥३॥ वह परमात्मा क्रोध मान माया लोभ और द्वेष आदिप्रपञ्चोंसे रहित होता | है, जन्म जरा मरण रति अति आदि दुर्गुणों से सर्वथा रहित होता है ॥४॥ वह परमात्मा निद्रा तंद्रा भय और |
आलस्य आदिसे रहित होता है, तृष्णादि पापोंसे रहित होता है, पाप पुण्यसे अलग रहता है और घातिया | कर्मोंसे रहित होता है ।।५॥ वह परमात्मा संसारको बढ़ानेवाले अठारह दोषोंसे रहित होता है तथा वन | अलंकार स्वीजन आदि सबसे रहित होता है ॥६॥ पसीना मल मूत्र आदिसे रहित होता है, आतक दुःखसे
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