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सुप्र०
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सद्बोधः स च जाग्रति IRolt यदा यदा हि साधोः स्यान्मनो मोहपराकमुखम् । द्वन्द्वातीतं भ्रमातीतं स्वं प्राप्नोति तदेव तम् |शा मोहादून्धो हि जीवस्य विमोहालकमनिर्जरा । माही भ्रमति संसारे विमोही लभते शिवम् HAI तस्मात्सर्व प्रकारेण मोहभावं निवारय । कृत्वा जिनागमे श्रद्धां गृहीचा बोधमुत्तमम् ॥३॥ प्रतिहत्य महामोहभ्रम हि तिमिरावृतम् । स्वानुभूत्यात्मबोधेन स्वात्मानं पश्य निर्मलम् ॥८॥ अज्ञानजनितां चेष्ठां जिनोक्तस्वचिंतया । निवारय भ्रम शीघ्रं मिथ्यात्ववासनायुतम् ॥५॥ सत्यात्मक जिनेन्द्रो धर्म चिन्तय भावतः। चिन्तं तस्मिन् स्थिरं कृत्वा भ्रममात्मन निवारय ॥८६॥ जिनाज्ञां शुद्धभावेन धारयात्मन हद हदम् । तया मोहनमो नूनं स्वयं खत्तः पलायते ||॥ चितया. स्मन जिनोक्तं हि तत्त्वं भवेन निर्मलम् । भ्रमा हिनश्यते तस्मात्स्वस्वरूपं प्रपधसे || चिदानन्दमये शुद्ध निवेशय
मू के कारण सो जाता है वह विपयादिकों में ही आकर लोला है जो मोह और पूछो छोड़कर सम्यग्ज्ञानी | हो जाता है उसे ही इस संसारमें जगनेवाला समझना चाहिये ।।८०|| जब जब साधुका मन मोहसे पास हो जाता है और सर्व उपद्रवोंसे रहित तथा भ्रमरहित हो जाता है तभी यह जीव अपने आस्माको प्राप्त | हो जाता है ॥८१।। इस जीवके मोह करनेसे कर्मों का बन्ध होता है और मोहका त्याग कर देनेसे कर्मोकी | निर्जरा होती है। मोह करनेवाला जीव इस संसाग्में परिभ्रमण करता है और मोहरहित जीव मोक्षको प्राप्त होता है ॥८२। इसलिये हे आत्मन् ! तू जैन आगमपर श्रद्धा रखकर और सम्यग्ज्ञानको प्राप्तकर सर तरहसे मोहका त्याग कर १८३॥ हे आत्मन् ! तू अंधकारसे घिरे हुए महामोहरूपी भ्रमको नाशकर स्वानुभूति और आत्मज्ञानसे अपने निर्मल आत्माको देख ॥८॥ हे आत्मन् ! तू भगवान् जिनेन्द्र देवके कहे हुए तत्वोंका | चितवनकर अज्ञान जनित चेष्टाका त्यागकर और मिथ्यात्वकी वासनासे भरे हुए भ्रम को शीघ्रही दूर | कर ८५॥ हे आत्मन् ! तु भगवान् जिनेन्द्रदेवके कहे हुए सत्यस्वरूप धर्मको शुभ परिणामोंसे ग्रहण कर और उसी धर्ममें अपना चिन लगाकर अपने भ्रमको दूर कर ॥८६॥ हे आत्मन् ! तू अपने शुद्ध मावोंसे भगवान् जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाको दृढ़ताके साथ धारण कर, क्योंकि भगवान् जिनेन्द्रदेवकी आज्ञासे यह मोहलपी भ्रम
अपने आप तुझसे भाग जायगा ।।८७॥ हे आत्मन् ! तू अपने परिणामोंसे भगवान् जिनेन्द्रदेवके कहे हुए II निर्मल तच्चोंका चितवन कर. क्योंकि तोंके चितवन करनेसे भ्रमका नाश हो जाता है और तू अपने आत्म