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बहिस्त्याज्यो मुमुचामिः ॥१चा व्यामोहतः शरीरादौ यस्यात्मप्रत्ययो भवेत् । बहिरात्मा स विज्ञेयः सुरक् शन्योस्तचेतनः ॥१६॥ मन्यते व शरीरं स श्रात्मरूपेण मूढधीः । स्वात्मानं देहरूपेण मन्यते मोइविभ्रमात् ॥१॥ शरीरे स्वास्मबुद्धि यो विदधाति प्रपद्यते । शरीरमेव चात्मास्ति नान्योऽहमिति मन्यते ॥१८॥ गौरोहं कृष्णवर्णोई निर्बलोई बलो तथा। देहरूपमयोप्यात्मा बहिः स प्रतिपद्यते ॥१॥ वृद्धोइं बालकोई वा प्रगुणी निर्गुणी तया । शरीरस्याभियोगेन स्वमिति मन्यते हुनी. नीरस हारेन जातोहनिति मन्यते । शरीरम्य वियोगेन मृतोहं वायवैति सः ॥२१॥ मनोक्षविषयाजात इष्टानिष्टे सुखासुखे । स्वात्मनः सुखदुःखं वा बहिरात्मा स मन्यते ॥२२॥ स सुरं देवपर्यापैः नृपर्याय नेर
तथा । नारकं शुभ्रपर्यायैरिति मुद्दो वितन्वते ॥२शा सर्वथापि पृथग्भूते पुत्रमित्रकलत्रके : आत्मबुद्धिं करोत्यत्र बहि|| का है बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । ध्यान करनेवाला ध्याता अन्तरात्मा होता है, ध्यान करने योग्य ध्येय में * परमात्मा होता है। मोक्षकी इच्छा करनेवाले पुरुषोंको बहिरात्माका त्यागकर देना चाहिये॥१५॥ मोहनीय कर्मके |
उदयसे जो शरीरमें हीआत्माका श्रद्धानकर लेता है उसीको रहिरास्मा समझना चाहिये। वह बहिरात्मा सम्यग्दर्शनसे | रहित होता है और उसकी चैतन्य शक्ति मी प्रायः नष्ट हो जाती है ॥१६॥ वह अज्ञानी अपने शरीरको ही 15
आत्मरूप समझ लेता है अथवा मोहनीय कर्मके उदयसे आत्माको ही शरीररूप समझ लेता है ॥१७॥ बहिरात्मा पुरुष शरीरमें ही आत्मबुद्धि कर लेता है, तथा शरीर ही आत्मा है अन्य आत्मा नहीं है इस प्रकार || मान लेता है ॥१८॥ बहिगत्मा समझता है कि मैं ही गौरवर्ण हूँ, मैं ही कृष्ण वर्ण हुँ, मैं ही निर्बल हूँ | और मैं ही बलवान् हूँ, इस प्रकार वह अपने आत्माको शरीररूप ही समझ लेता है ॥१९।। मैं बूढ़ा हूँ, मैं | बालक हूँ, मैं ही गुणी हूं और मैं ही निर्गुणी है, इस प्रकार शरीरके चिन्होंसे ही आत्माको समझता है यही | सा उसकी अज्ञानता है ॥२०॥ बहिरात्मा जीव शरीरके जन्म होनेको अपना (आत्माका ) जन्म समनता है और
शरीरके वियोग होनेको अपना मरना समझता है ॥२१॥ मन और इंद्रियोंके विषयसे उत्पन्न हुए इष्ट और | * अनिष्टमें अथवा सुख वा दुःखमें आत्माका ही सुख वा दुःख समझ लेता है ॥२२|| वह बहिरात्मा देवया पर्यायमें अपने आत्माको देव समझ लेता है, मनुष्यपर्याय आत्माको ही मनुश्य समझ लेता है और नरक
पर्यायमें आत्माको ही नारकी समझ लेता है ॥२३॥ यद्यपि पुत्र, मित्र, और स्त्रीआदि अपने आस्मासे सर्वथा मिल
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