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घरम् । जानाति सुखसिद्धयर्य परमारमानमरनु णा तस्मादि सर्वसंकल्पं स्पवस्वा भवाचिसो जनाः। खानुभूत्या
प्रपश्यन्तु स्वात्मारकम् । अमूर परमाहादे विशुद्ध परमात्मने । प्रतीतिरामनि सात्र खानुतिर्मता dot०
जिनैः ॥१६॥ प्रात्मीयपरमाल्हादसुखस्य विमलस्य या । प्रतीतिः सात्र विज्ञेया स्वानुभूतिः शुभावहा ॥२०॥ विशुद्धानो हि ॥१५॥ सिद्धानां विशुद्धज्ञानशालिनाम् । अनंतसुखरूपस्य प्रतीसिः स्वेऽनुभूतिका ॥२६॥ अमृत चेतनारूपे विशुद्धत्पत
निर्मले । स्वात्मद्रव्ये प्रतीतिर्या स्वानुभूतिर्मत। बुधैः ।।२२॥ शुद्धोपयोगभावेषु शुद्धमानमयेषु च । प्रशीतिः सात्र विशेया | स्वानुभूतिः सुखप्रदा ॥२३॥ स्वानुभूत्या हि स्वात्मानं वेत्त्यात्मा विमलं शुभम् । सर्ववन्द्रातिर्ग शुद्ध शुद्धचैतन्यशक्षणम् ॥२४|| सम्यक्त्वशालिजीवानां स्वानुभूतिर्भवेदिह । स्वात्मबोधी हि तेषां तु नान्येषां च कुदृष्टिनाम् ॥२॥ सम्यग्रहा नस्य पर्यायः स्वानुभूतिर्जिमागमे । कथिता जिननाथेन सर्वझेन महात्मना ||२६|| सम्यक्त्वपूर्वकं हानं सम्परानप्राप्त हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है ॥१६॥ संवेदनगोचर ऐसे आत्माको जो मुखप्राप्तिके लिये | जान लेता है वही आत्मा परमात्माको प्राप्त हो जाता है ॥१७। इसलिये श्रद्धालु मनुष्यों को समस्त संकल्पोंको छोड़कर अपनी खानुभूतिके द्वारा शुद्धस्वरूप अपने आत्माको देखना चाहिये ॥१८॥ अमूर्त, परमाल्हादरूप विशुद्ध और परमात्मस्वरूप अपने आत्मामें श्रद्धा रखनेको भगवान् जिनेन्द्रदेव स्वानुभूति कहते
हैं ॥१९।। अपने आत्मासे उत्पन्न हुए परमाल्हादरूप निर्मल सुखके विश्वास करनेको शुभ स्वानुभूति समझना | IAS चाहिये ॥२०॥ अन्यन्त विशुद्ध ज्ञानको धारण करनेवाले विशुद्ध सिद्धोंके अनन्त सुखका अपने आत्मामें || | विश्वास करना स्वानुभूति कहलाती है ॥२१॥ अमूर्त चैतन्यस्वरूप विशुद्ध और अत्यन्त निर्मल ऐसे अपने
आत्मद्रव्यमें श्रद्धा न करनेको बुद्धिमान् लोग स्वानुभूति कहते हैं ।।२२।। अत्यन्त शुद्ध ज्ञानमय शुद्धोपयोग- | रूप अपने आत्माके परिणामों में श्रद्धा न करनेको सुख देनेवाली स्वानुभूति कहते हैं ॥२३॥ यह आत्मा | | इसी स्वानुभूतिसे अत्यन्त निर्मल, शुभ, समस्त उपद्रवोंसे रहित शुद्ध और शुद्ध चैतन्यस्वरूप अपने प्रात्माको जान लेता है ॥२४॥ यह ऐसी स्वानुभूति सम्यग्दृष्टि पुरुषों को ही होती है, क्योंकि सम्यग्दृष्टि पुरुषों को ही अपने आत्माका ज्ञान होता है अन्य मिथ्यादृष्टियोंको यह आत्मज्ञान कभी नहीं होता ॥२५॥ सर्वज्ञ और महापुरुष भगवान जिनेन्द्रदेवने अपने सिद्धांतमें स्वानुभूतिको सम्पज्ञानका पर्याय ही बतलाया है ॥२६॥