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सु०प्र०
॥११॥
मा०
सूक्ष्मरथावरभेदतः । स्थावस द्विविधाः प्रोक्ताः सूक्ष्मवादरमेदतः । सेपि पंचविधा याः पृथिवीकायिकादयः । एकेन्द्रिया हि ते सर्व स्थावरकर्मपाकतः । यज्ञादयो हि पंचाहालसाः कर्मविपाकतः ॥२॥ संज्यसंशिप्रभेदेन पंचाचा द्विविधा मताः । अपर्यावाश्व पर्याप्ताः स्थावराश्च त्रसास्तथा ॥॥ पवं संसारिणो जीवः सर्व तेऽनकथा मताः। तेषां भेदाः प्रभेदाश्च ज्ञेया आगमती बुधः ॥ अनादिकालतो बद्धाः पुद्गलकर्मणा मह । फनकोपलवत्सर्वे शुष्यन्ति ध्यानवाहिना ॥६०ा कर्मणैव प्रकुर्वन्ति जन्म मृत्यं पुनः पुनः । नानायोनी प्रगच्छन्ति देहं धृत्वा मर्ष नवम् ॥६॥ यत्र हि कर्मयोगेन नानायोनावनन्तशः । जोया भ्राम्यन्ति संसारो जन्ममृत्युप्रदायकः ॥३२॥ संसार: पंचधा शेयो द्रव्यक्षेत्रादिभेदतः । मिथ्यात्वमोहभावेन जीवः संतरनि सयम् ॥३॥ न कोपि कस्य दुरनं वा मुखं वाव ददाति सः । | जीत्र शुद्ध कहलाते हैं तथा कर्ममहित संसारी जीव अशुद्ध कहलाते है । इन संसारी जीवोंके चम स्थावरक | मेदसे दो भेद हैं १८४-८५।। उनमें ये स्थूल मूक्ष्मफे 'भेदसे स्थावरोंके भी दो भेद है तथा पृथिवीकायिक, | जलकायिक, अनिकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिकके भेदसे प्रत्येक स्थावरके पांच पांच भेद हैं ॥८६|| ये सब जीव एकेन्द्रिय होते हैं और स्थावरनामा नामकर्मके उदयसे स्थावर कहलाते हैं । तथा प्रसनामा नामकर्म के उदयसे होनेवाले दो इन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइद्रिय और पंचेद्रिय जीव त्रस कहलाते हैं ॥८७॥ इनमें भी सेनी असेनीके भेदसे पंचेन्द्रियके मी दो भेद हैं तथा प्रम और स्थावर सभी जीव पपाल और अपर्याप्तके मेइसे दो प्रकारके कहलाते हैं ॥८८॥ इस प्रकार संमारी जीवोंके अनेक भेद हैं बुद्धिमानोंको उन सबका मेह | प्रमेद आगमसे जान लेना चाहिये ।।८९।। ये सब संसारी जीव दल काँफे साथ अनादिकालसे बंध रहे हैं। | जिस प्रकार सुवर्ण पापाणमें मोना अनादि कालसे मिल रहा है उसी प्रकार जीव काँसे मिल रहे हैं और फिर श्री | चे ध्यानरूपी यहिसे ही शुद्ध होते हैं ।।२०।। ये जीव कर्म ही निमित्तसे चार बार जन्म-मरण धारण करते | हैं और नवीन नवीन शरीर धारण कर अनेक योनियोंमें परिभ्रमण करने है ॥९॥ जहापर कर्मके निमित्तसे
ये जीव अनेक योनियों में अनंत चार परिभ्रमण करते रहते हैं उसीको संमार कहते हैं । यही संसार समम्त
जीवोंको जन्ममरण उत्पन्न करानेवाला है ।९२।। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और मायके मेदसे यह संसार पनि प्रकार भी है। इसी संसारमें निल्यान्य और मोहरूप परिमाणोंसे यह जीप स्वयं परिभ्रमण किया करता है ॥१३॥