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भोक्ता जीवः प्रमाणतः ॥३! सुखदुःखादिकार्याणां कृतकर्मफलात्मनाम् । भोक्ता जीवोस्ति संसारे व्यवहारनयेन सः ॥६६॥ कर्मनोकर्मणां भोका रागादीनां तथैव च । भोक्ता जीवोस्ति धाशुद्धद्रव्यार्थिकनयेन सः ॥६॥ कर्मण सर्वथाभावे भोका जीवः कदापि न । शुद्धद्रव्यार्थिवेनात्मा कर्ता भोक्ता न संभवः ॥८॥ किन्तु स स्वस्वरूपेण स्वात्मन्येव
मा० प्रतिष्ठितः । कृतकर्मफलैनात्र प्राप्तदेहप्रमाणकः ॥६९॥ समुद्धात विहायासौ व्यवहारनयेन सः । समुद्घाते तु जीवोस्त्रि व्यापको लोकगः खत्तु १७०॥ असंख्यातप्रदेशात्मा जीवोस्तीह स्वभावतः । ससंहारविसर्पाग्या स्वभावाभ्यां प्रदीपवत् 1 ७१|| स्थूलसूक्ष्मो भषेजीवो व्यवहारनयेन सः । कर्मणां सर्वथाभावे स्वस्वरूपे प्रतिष्ठितः ॥७२॥ न स्थूलो नापि सूक्ष्मो हि न 10 विभुर्न भ्रमात्मकः । घरमदेहतः किंचिन्न्यूनः शुद्धनयेन सः ॥७३॥ कृत्स्नकर्मक्षयाजीवो रूपातीतो निरंजनः । अमूर्तः | | शुद्धचैतन्यः स्वस्वरूपमयोथवा ॥४॥ कृत्स्नकर्मक्षयाज्जीवः स्वस्वरूपोपलब्धितः । ऊर्ध्वं ब्रजति लोकान्तं धर्मद्रव्य
काके फल-स्वरूप सुख दुःख आदि कार्योका भोक्ता यही जीव इस संसारमें व्यवहार दृष्टिसे माना जाता है। १॥६६॥ यह जीव कर्म नोकर्मके फलोंका भोक्ता है और अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे रागादिक भावोंका भोक्ता है ॥६७।। जब काँका सर्वथा अभाव हो जाता है तब यह जीव उनका भोक्ता मी नहीं रहता । इसलिये कहना चाहिये कि यह जीव शुद्ध द्रव्यार्षिक नयसे न कती है और न मोक्ता है । किन्तु उस समय अपने स्वरूपसे अपने ही आत्मामें निश्चल रहता है । इसके सिवाय यह जीव जो कर्म करता है उसके फलसे व्यवहार नपसे । समुद्घातको छोड़कर प्राप्त हुए शरीरका प्रमाण रहता है। तथा केवलि समुद्रात अवस्थामें लोकाकाशमें सब जगह से व्यापक हो जाता है ॥६८-७०।। यद्यपि जीव स्वभावसे ही असंख्यात प्रदेशी है तथापि दीपकके प्रकाशके | समान संकोच विस्तार स्वभाव होनेसे व्यवहारनयसे शरीरके प्रमाणके समान स्थूल सूक्ष्म हो जाता है । जब काँका सर्वथा अभाव हो जाता है तब वह अपने स्वरूपमें निश्चल हो जाता है ।।७१-७२॥ कमौके 12 अमावमें शुद्ध निश्चय नयसे यह जीवन स्थल है, न सूक्ष्म है, न व्यापक है और न भ्रमण करनेवाला है, किंतु अंतिम शरीरसे कुछ कम आकारस्प विराजमान रहता है ॥७३॥ समस्त कमाके क्षय होनेसे यह जीव रूपरहित निरंजन, अमूर्त शुद्ध चैतन्यस्वरूप और स्वस्वभावमय रहता है ॥७४॥ समस्त कमौके नाश हो जानेसे इस जीवको अपने स्वरूपकी प्राप्ति हो जाती है। और इसलिये यह जीव धर्मद्रव्यके निमित्तसे ।
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