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1 पंचवर्णकाः । न सन्ति निश्चयाजीये ततोऽमूर्छ जिनर्मता | सफ्वतः पुहलो मूर्तः स्पर्शाविसहितो यः। तत्साहचर्य | तो जीवो मूर्तिमान कथितो जिनैः ।।४६|| कर्मनोकर्मणा काव्यवहारमयेन सः । अशुद्धव्यवहारेण घटादीनामपीष्यते || रागावीना तथा कर्ता वाशुद्धनयतो यतः । स शुद्धनिश्चयाजीवः शुद्धानहानकत कः ॥५॥ कर्ता स्रष्टा न जीवोस्ति शुद्ध द्रव्यमयेन सः । रागभावो हि यत्रास्ति कत्वमुपयुज्यते ॥५॥ व्यवहारेण तत्रैव रागाभावान्न करकः । रागादिकमतो मुक्तो वीतरागी निरंजनः ।।६|| अमूर्तः परमात्मा हि सृष्टेः स्रष्टा कथं भवेत् । ईश्वरः कृतकृत्योस्ति मोहमायादिदूरगः ॥६१।। मोहाभावात्कथं कर्ता भवातीसो यतो हि सः । तस्मावनादितो जीवो पद्धकमफलेन सः ॥३२॥ नानायोनौ हि सृष्टेस्तु स्वयं सृजति नश्यति । द्रव्यस्य सर्वथा नाशो नास्तिकचित्कदापि वा ॥६शा किन्तु पर्यायरूपेण व्ययोत्पादो भवेत्सदा । | कर्मोदयात्स संसारे नानायोनी भ्रमन सवा ॥४॥ सृजति व्येति पर्यायान स्वयं कर्ता यतो मतः । यो हि कर्ता स एवात्र | उसीके गुण हैं । उसीके संबंधसे इस जीवको भी भगवान जिनेन्द्रदेषने मूर्व कह दिया है ॥५६॥ व्यवहार नयसे यह | जीव कर्म नोकाँका कर्ता है और अशुद्ध व्यवहारसे घटादिकका मी कर्ता है ॥५७।। यही जीव अशुद्ध नयसे रागद्वेषादि- | भाकका कर्ता है और शुद्ध निषय नयसे शुद्ध दर्शन और शुद्ध ज्ञानका कर्ता है । ५८॥ शुद्ध द्रव्यार्षिक नयसे न तो यह Hi जीव कर्ता है और न स्रष्टा है क्योंकि जहां रागभाव होता है वहींपर व्यवहारनयसे कर्तृत्वका उपयोग हो सकता
| जहाँपर रागका अभाव है वहांपर कर्तृत्वका अभाव भी अवश्य मानना पड़ता है। जो जीव रागादिक कर्मसे सा रहित है यह वीतरागी है. निरंजन है, अपूर्व है, और परमात्मा है। ऐसा जीव इस सृष्टिका स्रष्टा कैसे हो सकता है। | जो ईबर होता है वह कृतकृत्य होता है और मोह-मायासे रहित होता है। तथा जो जीव मोहसे रहित होता है वह का कमी नहीं हो सकता क्योंकि यह संसारसे रहित होता है । इसलिये अनादि कालसे यह जीव बंधे हुए ककि फलसे अनेक योनियों में परिभ्रमम करता हुआ इस सृष्टिका स्रष्टा कहलाता है और स्वयं नाशको प्राप्त होता है । पह भी निश्चित है कि कमी किसी कालमें मी द्रव्यका नाश नहीं होता। केवल पर्यायरूपसे ही उत्पमा
और नाश होता रहता है। कर्मके उदयसे या जीन संसारकी अनेक योनियोंमें परिभ्रमण करता हुआ ISL पर्सयोको सवं उत्तम करता रहता है और सकरवा रहायसीलिये यह जीव कार लाता है। या
को सपही अनिच्चि प्रमावो का होता है ॥५९-६५॥ सकिने जाना जाने कि किनेर
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