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पुरुपाकाराः कथं ननु भवन्ति ते ॥२७|| शुद्धादर्श यथाकारो जिननिम्बस्य यद्भवेत । अथाकारी हि सिद्धानामाकाररहितात्मनाम् ॥२८|| याङनिर्गतबिम्बस्य मूपिकोदरतोऽथवा । ताहक च गगनाकारं सिद्धानां हिमवत्खलु र आकारी द्विविधः | प्राको मूर्तामूर्तप्रभेदतः । रूपचन्मूर्तवस्तृनामाकारः स्यादनेकधा ॥३०॥ द्रव्यागामिह मूर्तानामाकारम्य च कल्पना : द्रव्याणां गतरूपाणाममूर्तानां भवेदिड् !॥३१॥ धर्मादीन च सिद्धानामाकारः स्वप्रदेशतः । स्याद्रव्यात्मप्रदेशानामाकारम्नु स्वभावतः ॥३२॥ प्रदेशसहितं द्रव्यं निराकारं कथं भवन् । श्राकारः स्यात्ततो मूर्तामूर्तदन्यस्य निश्चयान ॥३॥ नाशिताशेपसंसारं जन्ममृत्युविवर्जितम्। निर्विकारं पुनर्जन्म व्यतीतं शाश्वतं शिवम् ॥३४॥ ध्यायेदविचलं श्रेष्ठं परि वर्तनवर्जितम् । नित्यं सनातनं शान्तं निष्क्रिय विमलं शुभम् ।।३५।। चिन्मयं च परं ज्योतिः स्वमयं परमातरम । आत्मस प अनितम् ॥३६॥ स्वगुणात्सर्वथाऽभिन्न लोकालोकप्रकाशकम् । स्वात्मगुणमयं द्रव्यं शुद्धकनक
Ki है, निरञ्जन हैं, तथापि वे पुरुषाकार कैसे कहे जा सकते हैं ? इनका उत्तर इस प्रकार है कि जिस प्रकार शुद्ध व दर्पणमें भगवान्के प्रतिविम्बका आकार होना है, उसीप्रकार आकाररहित सिद्धोंका भी पुरुषाकार समझना
चाहिये । अथवा जिसप्रकार जिम सांचेमेंसे भगवान् जिनन्द्रदेवकी प्रतिविम्ब निकाल ली गई है, उस सांचे 5 का जैमा आकार है, वैसा ही आकाशके अकार सिद्ध परमेष्ठीका आकार ममझना चाहिये ॥२७-२९॥ मूर्त| अमूर्तके भेदसे आकारके दो भेद होते हैं । रूपसहित जो मूने दार्थ हैं, उनका आकार अनेक प्रकारका होता है । जो मूत द्रव्योंमें आकारकी कल्पना होती है, उसी प्रकार आकारकी कल्पना रूपरहित अमूर्त द्रध्यकी भी होती है ।।३०-३१॥ धर्मादिक द्रव्य अथवा सिद्धों का आकार अपने आत्मप्रदेशोंसे होता है । क्योंकि द्रव्योंके अपने प्रदेशोंका आकार स्वभावसे ही होता है ॥३२॥ फिर मला जो द्रव्य प्रदेशमहित हैं के निराकार कैसे हो सकते हैं ? इसलिये यह निश्चय समझना चाहिये कि मूर्त-अमूर्त दोनों द्रव्योंका आकार अश्य होता है ॥३३॥ इसलिये जिन्होंने समस्त संमारका नाश कर दिया है, जो जन्म-मरणसे रहित हैं, विकाररहित हैं, पुनर्जन्मसे रहित हैं, शास्वत है, कल्याणरूप है, स्थिर है, नित्य है, परिवर्तनरहित है. मनातन हैं,
शांत हैं, क्रियारहित हैं, मलरहित हैं, शुभ है, चिन्मय हैं, परम ज्योतिःस्वरूप हैं, आत्ममय हैं, परमाक्षर | अर्थात् सर्वोत्कृष्ट तथा अक्षय हैं, आत्म द्रव्यस्वरूप है, शुद्ध हैं, परपदार्थोके समागमसे सर्वथा रहित हैं, अपने