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म०प्र०
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तीतं विभुसनातनम् ।।१८। शुद्धज्ञानमयं सिद्धं परमात्मानमव्ययम् । अनादिनिधनं नित्यं शाश्वतं निरुपद्रवम् ॥१ut अव्याहतं परं सूक्ष्मं स्वप्रतिष्ठितमक्षयम् । सर्वद्वन्द्वविनिमुक्त सर्वतापविवर्जितम् ॥२०॥ निष्कलंक निरातकं शान्त दान्तमतीन्द्रियम् । संसारमागरोतीण चिदानन्दमयं शिवम् ॥२३॥ परमात्यंतिकावस्था प्राप्वं द्रव्यमयं शुभम् । मचलस्थितिक नित्यं पुनर्जन्मविजितम् ॥२२॥ ब्रह्माशमीशमीशानमीश्वरं परमेष्ठिनम् । एतादृशं भवातीतं सिद्ध ध्यायेच्छिवालये ॥२३॥ व्यक्तीभूता गुणाः सर्वे स्वात्मजा दुलेभा ननु । येषांस्तान खलु सिद्धानां स्मरामि भावभक्तिः |२४|| परद्रव्याच ये मिन्ना अभिन्ना स्वात्मवस्तुतः। शुद्धज्ञानमयाः शुद्धाः सिद्धा नः पान्तु चाक्षयाः ||२५|| कर्माष्टकविनिमु का गुणाष्टक | विभूषिताः । अष्ठमीपृथिवीनाथाः सिद्धा नः पान्तु सौख्यदाः ॥२६॥ सिद्धा याप्यमूर्ता हि निराकारा निररूजनाः । तथापि | शिखरपर विराजमान हैं, अन्तिम शरीरसे कुछ कम अकारमय हैं, चिदानन्दमय हैं, शुद्ध दर्शनखरूप हैं, नाशरहित हैं, शुद्ध सम्यग्दर्शनसे सुशोमित हैं, समस्त बाधाओंसे रहित हैं, समस्त आकुलताओंसे रहित हैं, अनन्त वीर्यसे सुशोमिन हैं, अनन्त मुखके ममुद्र हैं, अजर है, अमर हैं, जन्मसे रहित है, विभु हैं, सनातन हैं. शुद्ध ज्ञानमय हैं, परमात्मा है, व्ययरहित हैं, अनादि हैं, अनिधन हैं, नित्य हैं, शास्त्रत हैं, उपद्रवरहित हैं, अव्याहत हैं, सर्वोत्कृष्ट हैं, सूक्ष्म है, अपने ही आत्मामें स्थिर है, अक्षय हैं, समस्त उपद्रवोंसे | रहित हैं, समस्त नामोंसे रहित हैं, कलंकरहित हैं, आतंकरहित हैं, शांत हैं. इन्द्रियोंको दमन करनेवाले हैं।
इंद्रियोंसे रहित हैं. संसाररूप महासागरके पारगामी हैं. चिदानन्दमय है. कल्याणस्वरूप है. परम | अवस्थाको प्राप्त हो गये हैं, आत्म द्रव्यमय हैं, शुभ हैं, अचल स्थितिको धारण करनेवाले हैं, नित्य है, पुनर्जन्मसे
रहित हैं, ब्रह्मा हैं, ईश हैं, ईशान हैं, ईश्वर हैं, परमेष्ठी हैं और संसारसे रहित है। ऐसे सिद्ध परमेशीको | | मोक्ष प्राप्त करनेके लिये ध्यान करना चाहिये ॥१५-२३।। जिन सिद्धोंके आत्मासे उत्पन्न हुए और अत्यन्त
दुर्लभ ऐसे समस्त गुण प्रगट हो रहे है, ऐसे उन सिद्ध भगवानको मैं भाव और भक्तिपूर्वक स्मरण करता हूं। ॥२४॥ जो सिद्ध परमेष्ठी परद्रव्यसे सर्वथा मित्र है, तथा अपने आत्मद्रव्यसे सर्वथा अभिम हैं, शुद्ध ज्ञानमय | है, शुद्ध हैं और अक्षय है; एसे सिद्ध परमेष्ठी हम लोगोंकी रक्षा करें ॥२५॥ जो सिद्ध परमेष्ठी आठों कर्मोंसे सर्वथा रहित है, सम्यक्त्व आदि आठों कोंसे सुशोमित हैं, जो आठवीं पृथ्वीके स्वामी है, अनन्त सुख | देनेवाले हैं; ऐसे भगवान् सिद्ध परमेष्ठी हम लोगों की रक्षा करें ॥२६॥ सिद्ध परमेष्ठी यद्यपि अमूर्त है, निराकार
सु०प० २६