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नान्यथाभूती नान्यरूपो भवाम्यहम् || ६७॥ यदा में कर्मबन्धः स्याद्भिन्नः स्वात्मप्रदेशतः । भविष्यामि तदाहं वै शुद्धः स्वर्ण इवाद्भुतः ||६|| कदा मे कर्मबन्धोऽसौ नाशं यायात्तपोऽग्निभिः । इति कर्मविनाशाय चिन्तनं यत्पुनः पुनः ॥६६ चित्तैकाप्रनिरोधेन चानन्यमनसा स्वयम् । अपायविचर्यं व्यानं तत्स्यात्कर्मरजालकम् ||७० || ज्ञानादिकमदाष्टाभ्यो न स्यादोपो हगादिषु । तदपायनिरासार्थं चिन्तनं यत्पुनः पुनः ॥७१॥ अपायविचयं ध्यानं मदाष्टकनिवारणम् । शल्यत्रये मेघातितं शुद्धदर्शनम् ॥ ७२ ॥ शल्यत्रयनिरासार्थं चिन्तनं यत्पुनः पुनः । अपायविचयं ध्यानं शल्य त्रयनिवारणम् ॥७३॥ अयं मूढजनश्चात्र तत्वं वेत्ति न तत्त्वतः । अन्यथा मनुते देवमन्यथा मनुते गुरुम् ॥७४॥ अन्यथा हि विजानाति धर्मं हि पापकर्मसु । हा मोहकर्मणा सोऽयं वचितो अमितश्च वा ॥ ७५॥ केनोपायेन मोहोऽसौ जेतव्यो दुर्जयो हि सः । इति मोहनिरासार्थं चिन्तनं यत्पुनः पुनः ॥७६॥ निकामनिरोधेन चानन्यमनसा हि वा । अपायविवयध्यानं तत्स्या र्शनादिक गुणोंके द्वारा अपने आत्मा में आत्मस्वरूप हूं; मैं आत्मा से न तो अन्य हूं, न अन्यथा हूं आर न अन्यरूप हूँ | मेरे आत्मा के प्रदेशोंसे जब यह कर्मों का बंध मिश्र हो जायगा तब मैं शुद्ध सुवर्ण के समान अद्भुत चमत्कारको धारण करनेवाला हो जाऊंगा। वह मेरा कर्म तप अशिसे कम नाथ को प्राप्त होगा ? इसप्रकार कर्मो का नाश करनेके लिये अन्य सब चितवनको रोककर एकाग्रमनसे बार बार चिंतन करना कम को नाश करनेवाला अपायविचय नामका धर्मध्यान है ॥१६६ - ७० ॥ ज्ञानादिकसे होनेवाले आठ मदोंके द्वारा मेरे सम्यग्दर्शनादिकमें दोष न आवे, इस प्रकार उन दोषोंका नाश करनेके लिये बार बार चिंतन करना आठों
को निवारण करनेवाला अपायवित्रय नामका धर्मध्यान है। अबतक माया, मिथ्यात्व और निदान इन तीनों शल्योंने मेरे सम्यग्दर्शनका घात कर रक्खा है, यही समझकर तीनों शल्पों को दूर करनेके लिये बार बार चितवन करना तीनों शल्योंको निवारण करनेवाला अपायविचय नामका धर्मध्यान है । ७१-७२ ।। ये अज्ञानी जीव वास्तव में यथार्थ चोंका स्वरूप नहीं जानते हैं, देव गुरु और धर्मके स्वरूपको भी अन्यथा समझते हैं ऐसे अज्ञानी लोग पाप कार्यों में ही धर्म मान लेते हैं । दुःख हैं कि ऐसे अज्ञानी मोह कर्मके उदयसे ठगे गये हैं और इसीलिये वे परिभ्रमण कर रहे हैं। ऐसा वह दुर्जय मोह किस प्रकार जीवा जा सकता है ? किस उपायसे जीता जा सकता है ? इसप्रकार मोहका नाश करनेके लिये अन्य समस्त
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