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निराकृत्यैकाप्रेण च त्रियोगतः । श्रपायविचयं ध्यानं दुर्बुद्ध नाशकं परम || १८ || महामिध्यात्वसंयुक्ता जीवाः कुर्वन्त्यचं महत् । अन्तर्जातिविवाहेन विजातिग्रहणेन वा ||१६|| नानादुःखकरं नियं मोक्षमार्गविघातकम् । तेन पापेन से जीत्राः संसारे पर्यठन्ति च ||२०|| जन्ममृत्युभयक्लेशं वराकाः प्राप्नुवन्ति ते । केनोपायेन चैतेषां निवृत्तिः स्यात्कुपापतः ॥२१॥ अन्य चन्यां निराकृत्य तस्यैकाप्रेण चिन्तनम् । श्रपापविचयं ध्यानं तत्स्यात्पापविलोपक्रम २२|| ती मिथ्यात्व मासाथ जीव । चाक्षसुखेप्सया । घोरपापकरं भ्रष्ट नियं शास्त्रं निखन्ति च ||२३|| सत्यधर्माद्विरुद्धं हि मोक्षमार्गविनाशकम् । | से लिखन्ति कुशास्त्रेषु मिथ्यामतपोषकम् ||२४|| व्यभिचारे न दोपोऽस्ति न दोषः पलभक्षणे । अभक्ष्यभक्षणे नैव मधुमयादिसेवने ॥२५॥ न कश्चिदस्ति सर्वज्ञो न वीरोऽस्ति जिनोऽथव । न पुण्यं नैव पापं वा न मोक्षं च लिखन्ति ते ||२६| दयाष्टिं समादाय तेषामुद्धरणाय वै। घोरापायाद्धि चैकायैस्तदपा यस्य चिन्तनम् ||२७|| अपायविषयं ध्यानं विदुः पापएकाग्रता से अन्य समस्त चिन्ताओं को रोककर बार वार चितवन करना दुर्बुद्धिको नाश करनेवाला सर्वोत्कृष्ट अपायविचय नामका धर्मध्यान कहलाता है ।।१४ - १८ || तीव्र मिध्यात्वसे घिरे हुए जीव अंतर्जातीय वा विजातीय विवाहकर अनेक प्रकारके दुःख उत्पन्न करनेवाले, मोक्षमार्गको नाश करने वाले और महानिन्य ऐसे महापापको उत्पन्न करते हैं। जिन पापों के उदयसे वे जीव इस संसार में परिभ्रमण करते हैं और उसमें वे दुःखी जीव जन्म, मरण और भय आदिक अनेक क्लेशोंको महन करते हैं। ऐसे ये जीव किस उपाय से इन महापापोंसे छूट सकते हैं ! इसप्रकार अन्य सत्र चिन्ताओंसे हटकर एका मनसे चिन्तन करना समस्त पापको नाश करनेवाला अपायविचय नामका धर्मध्यान कहलाता है ।।१९ - २२ ।। तीत्र मिध्यात्व के उदय से ये जीव केवल इंद्रियों के विषयों की इच्छासे घोर पाप उत्पन्न करनेवाले निन्ध और भ्रष्ट शास्त्रों को लिखते हैं । यथार्थ धर्म के विरुद्ध और मोक्षमार्गको नाश करनेवाले शास्त्र लिखते हैं। वे लोग उन शास्त्रोंमें मिथ्यामत की पुष्टि लिखते हैं, व्यभिचारमें कोई दोष नहीं हैं, मांसभक्षण में कोई दोष नहीं है, अभक्ष्यभक्षण में कोई दोप नहीं है, मध और मधु आदिके सेवनमें कोई दोष नहीं है, इस संसार में कोई भी सर्वज्ञ नहीं हो सकता । न महावीर आदि तीर्थंकर ही हुए हैं, संसारमें न कोई मोक्ष है, न पुण्य है और न कोई पाप है। इसप्रकार वे सब झूठी बातें लिखते हैं, ऐसे जीवोंपर दयादृष्टि रखकर उनका उद्धार करनेके लिये एकाग्रमनसे उनके
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