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श्री:
* भीवीतरागाय नमः
मुनिराज श्रीधर्मसागरविरचितः
• सुधर्मध्यान- प्रदीपः •
reciteration |
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बंदों हृषभ जिनेशके, चरण सरोज उदार । धर्म- ध्यान- प्रदोषकी, करूं वचनिका सार ॥
ज्ञानात्मरूपाय निरञ्जनाय मोहादिदोषप्रविघातकाय | शिवाय शान्ताय शिवप्रदाय स्वानन्दकन्दाय नमो जिनाय ||१|| शुद्धाय शुद्धाय गुणान्विताय कर्मव्यतीताय चिदात्मकाय । नित्याय जन्मान्तकभेदकाय सिद्धाय पूज्याय नमो नमोऽस्तु ||२|| वृत्तप्रवीणं समितीद्धमुद्धमाचारवन्तं समयज्ञकं च । स्वात्मानमेवात्मनि भावयन्तं सूरिं प्रबन्दे जिनभावलानम् ||३|| जो भगवान् जिनेन्द्रदेव ज्ञानस्वरूप हैं, रागद्वेषादिकसे रहित हैं मोहनीय आदि समस्त दोषोंको नाश करनेवाले हैं, सबका कल्याण करनेवाले हैं, अत्यन्त शान्त हैं, मोक्षके देनेवाले हैं और आनन्दस्वरूप है; ऐसे भगवान् जिनेन्द्रको मैं नमस्कार करता हूँ ||१|| जो सिद्ध परमेष्ठी शुद्ध हैं, बुद्ध हैं, अनन्त गुणोंको धारण करनेवाले हैं, कर्मरहित हैं, शुद्ध चैतन्य-स्वरूप हैं, नित्य हैं, जन्म-मरणको नाश करनेवाले हैं और पूज्य है; ऐसे सिद्ध परमेष्ठीको मैं बार बार नमस्कार करता हूँ ||२|| जो आचार्यचारित्र पालन करनेमें निपुण है, समितियोंका पालन करते हैं, पंचाचारका पालन करते हैं, समय वा शास्त्रोंके जानकार हैं, अपने आत्मामें जो अपने
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