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परम पूज्य सुधर्मसागरजीने इस विशाल संस्कृत ग्रन्थकी रचना करके पूर्वाचार्योकी महान कृतिको पुनः साक्षात् स्मृतिपथमें ला दिया है। ऐसे सपोधन निग्रंथ दिगम्बर साधु आचार्यकल्प सुधर्मसागरजी महाराजको मैं मन-वचन-कायसे बार-बार नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु करता हूँ और उनके कल्याणकर प्रसादसे मेरा आत्मा भी निर्विकार एवं वियर मन जावे, ऐसी भाषना करता हूँ।
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