________________
KERSHA
कार्यभारको लेने से बहुत निषेध किया था और परमपूज्य आचार्य महाराजके चरणों में नम्र प्रार्थना की थी कि स्वामिन: आप ही इस महान कार्य के सम्हालने में समर्थ है, उस प्रकारकी पूर्ण सामर्थ्य मुझमें नहीं हैं। इसलिये श्राप ही शिक्षादीक्षा देने आदि कार्यको पूर्ववत करते रहे। विशेष कार्य लिये हमें आज्ञापित करें, आपको हम न तो कोई कष्ट होने देंगे और न आपके स्वतन्त्र धर्म-साधनमें कोई बाधा आने देंगे' आदि ।
जय आचार्य महाराजने सुनिराज सुधर्मसागरजीको कार्यभार सम्हालनेके लिये पुनः वाध्य किया और आज्ञा दे दी, तब उन्हें उक्त कार्य सम्हालना ही पड़ा। यद्यपि मुनिराज सुधर्मं सारजीकी यह उत्कट इच्छा थी कि यदि अपना कार्य आचार्य महाराज सौंपते ही हैं तो श्री १०८ सुनिराज नेभिसागरजी, मुनिराज बीरसागरजी, मुनिराज कुन्थुसागरजी, इनमेंसे किन्हींको सौंप देवें । उक्त तीनों ही महाराज प्रभावक तपस्वी, पूर्ण विद्वान् और इस कार्यके सम्हालनेके लिये सब प्रकारसे योग्य हैं; परन्तु उक्त मुनिराजोंके भी निषेध करनेपर और परमपूज्य आचार्य महाराजकी आज्ञा होनेपर परमपूज्य मुनिराज सुधर्मसागरजी महाराज ही दीक्षा प्रदानादि कार्योको सम्हालते रहे, परन्तु परमगुरु आचार्य महाराजकी अनुमति एवं उनकी आज्ञा लेना प्रत्येक कार्य में आवश्यक समझते रहे । संघका पृथक्-पृथक् बिहार होनेसे आचार्य. चरणोंमें निबेदनकर मुनिराज सुधर्मसागरजीने यह कार्य भार छोड़ भी दिया है । अस्तु ।
J
इस प्रकार पूज्य श्री १०८ मुनिराज सुधर्मसागरजी महाराजने परमाराध्य एवं स्वात्म चरमोन्नति-साधक मुनिपदको धारणकर अपना तो परम हित किया है, साथ ही आपके द्वारा धर्म एवं समाजका भी बहुत भारी हित हुआ। जिस पद्मावतीपुरबाल पवित्र सज्जाति में महाराजने जन्म लिया है, उसे तो विभूषित किया ही है, साथ ही सप्त परमस्थानोंमें पारित्राज्य ( मुनिदीक्षा) परम स्थानको धारणकर अपने विशुद्ध कुलको भी आदर्श एवं मुनिवंशके पवित्र नामसे प्रख्यात कर दिया है।
परम पूज्य लोक-हितकर दिगम्बर वीतराग तपस्वी मुनिश्रेष्ठ श्री १०८ सुधर्मसागरजी महाराजका जीवन परम पवित्र और वीतरागी त्यागियोंके लिये भी उच्चादर्श है। अपने नियमित पढावश्यक कर्म तथा सामयिक स्वाध्यायसे बचे हुए समय में मुनि महाराजने यह महान ग्रन्थ-- "सुधर्मध्यानप्रदीप" संस्कृत श्लोकोंमें बनाया है। इस मन्धकी रचना वीतरागी महर्षियों, विद्वानों एवं श्रावकों का बहुत बड़ा कल्याण होगा। इस पचम काल में ऐसे सर्वोच उद्धट विद्यन् महि
3